अपठित गद्यांश और पद्यांश

अपठित गद्यांश और पद्यांश

अपठित

अपठित अवतरण में बहुत सी बातें पूछी जाती हैं। रेखांकित शब्दों वाक्यांशों, या वाक्यों की व्याख्या तथा अर्थ पूछे जाते हैं कभी-कभी पूरे गद्यांश अथवा पद्यांश का भावार्थ और सरलार्थ पूछा जाता है। कभी-कभी अपठित गद्य व पद्य खंड से सम्बंधित अन्य प्रश्न पूछे जाते हैं ।

(१) कैसे हल करें – 

अपठित गद्य अथवा पद्य खन्ड को देखकर एकदम उसे हल करने में नहीं लग जाना चाहिये । वरन उसे हल करते समय निम्न- लिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए ।

उद्धृत अवतरण को कई बार ध्यानपूर्वक पढ़कर उसका मनन करना चाहिए । जब तक समस्त अवतरण का भाव हृदयंगम न हो जाए तब तक उसे बार-बार पढ़ना चाहिए ।

(२) रेखांकित या मोटे टाइप में छपे हुए अंशों की व्याख्या एवं उनके अर्थ को स्पष्ट तथा सरल शब्दों में प्रकट करना चाहिए ।

३) अपठित अवतरण की व्याख्या, सारांश, आशय और भावार्थ या तात्पर्य लिखने में बहुत अन्तर है । अतः इनको भली भाँति समझकर लिखना चाहिए। बिना सोचे-समझे लिख डालने से अर्थ का अनर्थ हो जाता है । फलतः छात्र परीक्षा में असफल रह जाते हैं ।

(१) व्याख्या- 

किसी बात को समझने के लिए उसका विस्तृत और स्पष्ट अर्थ लिखना, व्याख्या कहलाता है। अवतरण में जो विचार सूत्र रूप में वर्णित होते हैं । व्याख्या में उन विचारों को उदाहरण द्वारा अपना मत प्रकट करके स्पष्ट कर दिया जाता है । तात्पर्य यह है कि व्याख्या में भाषा, भाव एवं विचार आदि सभी बातों पर प्रकाश डाला जाता है और प्रत्येक विचार- धारा को सरल एवं सुबोध बना दिया जाता है ।

(२) सारांश -

सारांश में अवतरण का सार उपयुक्त शब्दों में ही प्रकट किया जाता है । इसमें नपे-तुले शब्द होते हैं । व्यर्थ के शब्द के लिए इसमें स्थान नहीं होता । अवतरण में विस्तृत रूप से वर्णित बात सारांश में सूत्र रूप से प्रकट की जाती है । सारांश जितना ही संक्षिप्त हो उतना ही अच्छा है ।



(३) भावार्थ-

इसमें अवतरण का भाव स्पष्ट रूप से दिखलाना चाहिए। भाषा, सौन्दर्य तथा अलंकार आदि बातों का दिखलाना इसमें अपेक्षित नहीं होता ।

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(४) आशय – 

लेखक की मूल इच्छा को प्रकट करना आशय अथवा अभिप्राय कहलाता है इसी को तात्पर्य भी कहते हैं ।

(५) अर्थ – 

इसमें अवतरण की भाषा को सरल करके लेखक का भाव सुचार रूप से प्रकट किया जाता है । इसमें टीका, टिप्पणी अथवा अपने विचार व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं। इसमें अवतरण के भाव को सीधे-सादे शब्दों में प्रकट किया जाता है ।

(६) शीर्षक – 

किसी गद्य या पद्य में जिस विषय के ऊपर का सारा वर्णन होता वही शीर्षक कहलाता है । यह संक्षिप्त शब्दों में गद्य या पद्य के मध्य भाग में मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा रहता है ।

जिस प्रकार से किसी मनुष्य का चेहरा देखते ही हम तुरन्त पहिचान का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। ठीक इसी तरह गद्य का शीर्षक देखकर उसमें वर्णित विषय की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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शीर्षक कैसा हो ?

(१) अवतरण को कई बार पढ़कर और बहुत सोच समझकर निश्चित
किया जाय ।
(२) रचना का सारा तत्व शीर्षक से झलकता हो ।
(३) शीर्षक संक्षिप्त, आकर्षक, गम्भीर तथा भाव पूर्ण हो । 
(४) शीर्षक कभी भी पूर्ण वाक्य में नहीं होता है । 
(५) शीर्षक सदैव मोटे अक्षरों में होना चाहिए।
अब उदाहरण ढंग पर कुछ अवतरण नीचे दिये जाते हैं। 

आदर्श अपठित गद्यांश

( १ )
ब्रिटिश साम्राज्यशाही का सामना करने में भारतवासियों का नेतृत्व करने वाले महात्मा गांधी 'रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम' कहकर जिनके नाम का संकीर्तन किया करते थे, औरंगजेबी अत्याचारों के विरुद्ध सफल-मोर्चा लगाने वाले महाराष्ट्र केशरी शिवा के गुरुदेव समर्थ रामदास ने 'श्रीराम जय राम जय जय राम, कहकर जिनके मन्त्र की दीक्षा दी थी तथा अकबर की कूटनीतिक चालों को सदा के लिए नष्ट कर राष्ट्र की जीवनी शक्ति को सुस्थिर रखने के उद्देश्य से गोस्वामी तुलसीदास ने राम- चरित मानस के द्वारा जिसका आदर्श चरित्र उपस्थित किया था वह है भारतीयता के प्रतीक राम ! मर्यादा पुरुषोत्तम राम !! मानवता के पुनः प्रतिष्ठापक राम !!! भारतीय जन जन के आराध्य देव एवं उपास्य देव राम !!!!
(अ) उपर्युक्त अवतरण का शीर्षक दीजिए ।
(ब) महात्मा गाधी के प्रिय कीर्तन 'रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम' की द्वितीय कड़ी की पूर्ति कीजिये ।
(स) 'राम' का आदर्श किन-किन महान् व्यक्तियों ने लिया और वह अपने कार्य में कहाँ तक सफल हुए?
(द) लेखक ने 'राम' को किन-किन गुणों से विभूषित किया है ? 

उत्तर- 
(अ) इस अवतरण का शीर्षक राष्ट्र पुरुष 'राम' है । 
(ब) कीर्तन की पूर्ति -
रघुपति राघव राजा राम पतितपावन सीताराम । 
ईश्वर अल्ला, तेरा नाम, सबको सन्मति दे भगवान ॥
(स) राष्ट्र पुरुष राम का आदर्श महात्मा गाँधी ने लिया था जिसके कारण वह भारत को स्वतन्त्र कराने में सफल हुए। महाराष्ट्र केशरी शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ने भी राम को आदर्श मानकर शिवाजी को गुरु दीक्षा दी थी जिसके कारण शिवाजी ने औरंगजेब जैसे अत्याचारी शासक का दक्षिण भारत से उन्मूलन किया था । गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामायण को रच-कर अकबर की हिन्दुओं को विधर्मी बनाने की योजना को असफल किया था। 
(द) लेखक ने राम को 'भारतीयता के प्रतीक राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, मानवता के प्रतिष्ठापक राम, भारतीय जनों के आराध्य एवं उपास्य देवं राम, कहकर विभूषित किया है ।'

(२)
दुर्ग पर अभी तक राष्ट्र ध्वज ही फहर रहा था। चारों ओर मुगल घेरा डाले पड़े थे । लगभग पचास वीर सैनिक ही भीतर थे, छत्रपति भी उन्हीं में से एक थे। इतनी बड़ी वाहिनी से टक्कर लेना युक्तिसंगत न समझकर बाहर निकलने का वे उपाय सोच रहे थे कि आप की यह चौड़ी खाई एक ही उछाल में पार करना असम्भव है । सहसा कोई तरुण आगे बढ़ा और शीघ्रता कीजिए, कहता हुआ वह धधकती हुई आग के उन लाल अंगारों पर पसर गया । तत्काल बुद्धि से शिवा ने छलांग ली और उस पर चरण रखते हुए उस पार निकल गये । अन्यों ने भी उसका अनुसरण किया। दूर जाते हुए शिवा ने एक बार पुनः मुड़कर आग में विलीन होते हुए उस युवक की ओर देखा । अनायास ही अस्फुट स्वर में उनके मुख से निकल गया 'हरीहर' । 
(अ) अचानक आगे बढ़ने वाला तरुण कौन था ?
(ब) यदि तरुण के स्थान पर आप होते तो क्या करते और क्यों ? 
(स) टक्कर लेना, असम्भव होना, अनुसरण करना, विलीन होना का अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग करिये।
(द) 'तत्काल बुद्धि' से क्या आशय है ? अपने जीवन की कोई एक ऐसी घटना बतलाइये जिसमें तत्काल बुद्धि का परिचय प्राप्त होता हो ।

उत्तर- (अ) अचानक आगे बढ़ने वाला नवयुवक 'हरीहर' था ।
(ब) यदि नवयुवक हरीहर के स्थान पर मैं होता तो मैं भी अपने प्राणों परवाह न करने आग के अंगारों पर लेट जाता ताकि राष्ट्रनायक छत्र- पति शिवाजी के प्राणों की रक्षा हो जाती। राष्ट्र नायक के प्रति प्रत्येक देश- । वासी को प्रतिक्षण प्राणोत्सर्ग करने के लिए तैयार रहना चाहिए ।
(स) टवकर लेना - मुकाबिला करना। स्वेज नहर के प्रश्न पर मिश्र भी अंगेजों से टक्कर लेने के लिए तैयार था । 

असम्भव होना

नामुमकिन होना । वैज्ञानिकों के लिए मृत्यु पर विजय पाने की समस्या आज भी असम्भव हो रही है।

अनुसरण करना — 

पीछा करना । राष्ट्र निर्माताओं का अनुकरण सभी देशवासी किया करते हैं ।

बिलीन होना - लुप्त हो जाना। साहस के साथ मुकाबिला करने से कठिनाइयाँ विलीन हो जाती हैं ।
(द) 'तत्काल बुद्धि' से आशय है कि कठिन अवसर पड़ने पर अपनी बुद्धि से उस समस्या का शीघ्र समाधान कर सके ।

तत्काल बुद्धि-सम्बन्धी एक घटना

यह उस समय की घटना है जबकि मैं किशोरावस्था के बाहरवे बसन्त को पार कर चुका था। शिक्षा समाप्त करने के बाद प्रतिदिन ज्येष्ठ की प्रखर मध्याह्न बेला में अपने साथियों के साथ कुत्तों को लेकर बाग की सघन झाड़ियों में इधर-उधर खोजता रहता जन मूक प्राणियों को जो तारों भरी रातों के सघन अन्धकार में स्वच्छन्द विचरण किया करते थे । उस समय हिंसा, अहिंसा का मुझे किंचित भी ज्ञान न था । खरगोशों एवं मृग शावकों के पीछे कुत्ते दौड़ाकर जो मुझे आनन्द आता वह लिपि में अंकित करने से बाहर है। एक दिवस जब मैं नित्य की भाँति अपनी शिकार की खोज में व्यस्त था तो मुझे क्या पता था कि मैं ही शिकार बनकर अपने शिकारी के सम्मुख खड़ा था । हुँ गुरं-गुरं घड़क चूं दच करके सुअर ने मेरे ऊपर आक्रमण कर दिया। मौत अपना भीषण विकराल मुँह फाड़े मेरी ओर शीघ्र गति से आगे की ओर बढ़ रही थी। हक्का बक्का होकर मेरे मुँह से चीख निकल पड़ी । क्षणों की घड़ियों में मैं क्षत विक्षत होकर धराशायी हो गया । अस्त्र- शस्त्र के नाम पर मेरे पास एक छोटा सा डन्डा था । उसी डण्डे को लेकर मैंने सुअर के मुंह में डाल दिया । गले में उतर कर उसने सुअर को व्याकुल कर दिया । तत्काल बुद्धि ने प्राण संकट से मेरा उद्धार किया और वह मुझे छोड़ कर भाग गया । मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया और उस दिन से शिकार करना छोड़ दिया ।
(३)
सत्य पर विस्मृति की तहें जमाकर उसे कुछ क्षणों के लिए आवृत किया जा सकता है किन्तु सदैव ही जनता का उस वास्तविकता के ज्ञान से वंचित रखकर उसकी आँखों में धूल नही झोंकी जा सकती है। एक स्थान की अग्नि भस्मावगुंटित करके कालान्तर के लिए धूमिल की जा सकती है किन्तु अग्नि के जलने और प्रकाश देने के गुण का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है। 
(अ) सत्य की उपमा किससे दी गई है।
(ब) विस्मृति आवृति, गुण के विपरीतार्थक शब्द लिखिए । 
(स) मोटे शब्दों की व्याख्या कीजिए ।
(द) गद्यांश का भावार्थ लिखिए ।

उत्तर- (अ) सत्य की उपमा अग्नि से दी गयी है ।
(ब) शब्द                               विपरीतार्थक
विस्मृति                                  स्मृति
आवृत                                  अनावृत
गुण                                       अवगुण
(स) मोटे वाक्यों की व्याख्या
विस्मृत की तहें जमाकर—भुला करके ।
आँखों में धूल नहीं झौंकी-धोखा नहीं दिया ।

कालान्तर के लिए धूमिल - 

कुछ समय के लिए किसी बात के लिए की जा सकती है। रहस्य को छिपाया जा सकता है।

भावार्थ- 

सचाई अग्नि की भाँति एक प्रकाशमान वस्तु है जिसको कभी छिपाया नहीं जा सकता है । जिस प्रकार से अग्नि को मलकर कुछ समय के लिए धूमिल किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार सच्चाई के ऊपर कुछ समय के लिए पर्दा डाला जा सकता है ।
(४) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९६६
विद्वानों का कथन बहुत ठीक है कि नम्रता ही स्वतन्त्रता की धात्री व माता है । लोग भ्रमवश अहंकार वृति को उसकी माता समझ बैठते हैं। पर वह उसकी सौतेली माता है जो उसका सत्यानाश करती है। चाहे यह सम्बन्ध ठीक हो या न हो, पर इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्म संस्कार के लिए थोड़ी बहुत मानसिक स्वतन्त्रता परम आवश्यक है। चाहे उस स्वतन्त्रता में अभिमान और नम्रता दोनों शामिल न हों और चाहे वह मनुष्य की नम्रता ही से उत्पन्न हो । यह बात तो निश्चय है कि मनुष्य मर्यादा पूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है । उसके लिए वह गुण अनिवार्य है जिससे आत्म- निर्भरता आती है और जिसमें पैरों के बल खड़ा होना आता है । 
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए ।
(ब)मोटे टाइप के अंशों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

(५) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९६७

ध्रुवप्रदेश पृथ्वी के दो छोर हैं। इन प्रदेशों में हिम का अबाध साम्राज्य है। वहाँ कितना शीत और अन्धकार है कैसी भयावह निर्जनता और निस्तवधता है। इसका अनुमान करना भी दुष्कर है। पर इन्हीं ध्रुव प्रदेशों की खोज निकालने की लालसा जब उसमें जगी होगी, तो एक क्षण के लिए वह अज्ञात प्रदेश की ओर जाने के लिए हिचका होगा-पर कहाँ ? संकटों के सेतु पर बढ़ता ही पहुँच गया। ध्रुव प्रदेश तक पहुँचने की कथा


बड़ो साहसपूर्ण तथा करुण है । पर इसी साहस में मानव-जाति का प्राण है। जिस दिन मनुष्य आगे बढ़ना छोड़ देगा, वही उस सभ्यता का अन्तिम दिन
समझा जावेगा ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए । 
(आ) रेखांकित अंशों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

(६) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९६८

इन युद्धों के भीषण परिणामों को भुगतने के उपरान्त भी तीसरे महायुद्ध की सम्भावनाएं बढ़ती जा रही हैं । युद्ध की भयंकरता और उनका विनाश- । कारी रूप भी बढ़ गया है। प्राचीन काल में युद्ध दो जातियों या दो देशों के पारस्परिक संघर्ष के रूप में होता था। परन्तु अब यह बात नहीं रही है। आज यदि युद्ध होता है तो उन्हीं दो जातियों या देशों तक सीमित नहीं रह सकता । उसका प्रभाव देशव्यापी होगा । विश्व के एक कोने में उठी हुई युद्ध की चिनगारी उस कोने में ही सीमित न रह कर समस्त विश्व को अपनी ज्वाला में लपेट लेगी और हमारा पूर्ण विनाश कर देगी ।
अ) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिये ।
ब) मोटे टाइप के अंशों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।


एक पुराने विद्वान का कहना है कि विश्वासी मित्र से बड़ी रक्षा होती है। जिस आदमी को ऐसा मित्र मिल जाय, मानो उसे संसार का सबसे बड़ा कोष मिल गया। विश्वासी मित्र जीवन की औषधि है । ऐसा मित्र हमें दोषों और त्रुटियों से बचाता है। हमारे सत्य और पवित्रता को पुष्ट करता है। जब हम बुरे मार्ग पर पैर रखते हैं तो वह मित्र हमें सचेत करता है और जीवन-निर्वाह में हमें प्रत्येक प्रकार की सहायता देता है । ऐसे ही आदमी से प्रत्येक युवा पुरुष को मित्रता करनी चाहिए।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिये ।
(आ) मोट टाइप के अंशों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

(७) जू० हा० स्कल परीक्षा सन् १६७०

स्वावलम्बी मनुष्यों की यश-कीर्ति पूर्णिमा की चन्द्रिका के समान चारों ओर फैलती हैं। उनका यश-गान चारण और भाट शताब्दियों तक गाया करते हैं । कवियों और लेखकों की लेखनी उनकी धवल कृतियों का निरन्तर बखान किया करती हैं । उनका अभिनय रंगशालाओं तथा चित्रपटों पर हुआ है । पाठक और श्रोता मनोरंजन के अतिरिक्त उनसे नित्य नये पाठ सीखा करते हैं। मनुष्य की कीर्ति उसकी शारीरिक सुन्दरता नहीं वरन् उसकी पुण्य कृतियों से फैलती है ।

(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिये । 
(आ) मोटे टाइप के अंशों का अर्थ स्पष्ट कीजिये ।

(8) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९७१

सर्वोदय को दृष्टि में रखकर बापू ने धरती पर ही स्वर्ग को इस प्रकार उतारना चाहा, मेरे विचार में स्वर्ग वह है जहाँ कोई भिखारी या दरिद्र नहीं, ऊँच-नीच नहीं, करोड़पति मालिक और उनके भूखे नौकर नहीं, जहाँ मादक पैय नहीं, जहाँ स्त्रियों का पुरुषों की भांति सम्मान होगा और "स्त्री-पुरुष शुद्ध मार्ग पर चलेंगे । जहाँ सभी धर्मों के लोग स्त्रियों की बेटी, बहिन या माँ के रूप में देखेंगे । वहाँ छुआछूत नहीं होगी तथा सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता बरती जायेगी ।"
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए ।
(आ) मोटे टाइप के अंशों का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।

(१०) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९७२

जो काम करना हो, उसे आत्मीयता से करें, एकाग्रता से करें। वही सृजन जीवन का मूलतन्त्र है। रात में सोने से पहिले निश्चय करें—कल मैं अपने काम पर पूरा ध्यान दूंगा, उसमें रुचि लूंगा, वह सरलता से अच्छी तरह कैसे पूरा किया जा सकता, इस पर विचार करूँगा । फिर दूसरे दिन उठते ही अपने काम में लग जाइये, और देखिये क्या परिणाम होता है । सफलता मिलेगी, कष्ट की मात्रा पूर्वापेक्षा निश्चित रूप से कम हो जायेगी । 
(क) जीवन में सफल होने का क्या मन्त्र है ?
(ख) अपने को कार्य लगाने में पूर्व हमें क्या निश्चय करना चाहिए। 
(ग) मोटे टाइप का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
(घ) ऊपर लिखे गद्य का उपयुक्त शीर्षक लिखिए ।

(११) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १६७३

राष्ट्रीय ध्वज का स्थान बहुत ऊँचा है । यह किसी देश की जनता की शक्ति का प्रतीक है परन्तु ध्वज वहीं तक ऊँचा हो सकता है, जहाँ तक उस देश की जनता आगे बढ़ सकती है। यही बात आपके विषय में भी है। आप वहीं तक आगे बढ़ सकते हैं, जहाँ तक बढने का आप अपने मन को विश्वास दिला सकते हैं । अन्य लोग आपको नहीं समझते हैं, जो आप अपने आपको समझते हैं। किसी भी व्यक्ति का मूल्य व महत्व संसार उतना ही समझता है, जिसका उस व्यक्ति में आत्मविश्वास हो
(क) ऊपर लिखे गद्य भाग का उपयुक्त शीर्षक लिखिए ।
(ख) किसी देश का ध्वज कहाँ तक सम्मान पा सकता है ? 
(ग) ध्वज किस प्रकार जनता की शक्ति का प्रतीक है ? 
(घ) मोटे टाइप के वाक्य स्पष्ट कीजिए ।

(1२) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १६७४


आलस्य को छोड़ने के लिए शारीरिक श्रम करना चाहिए। आलस्य को जीतने का एक यही उपाय है। यदि इससे काम न लिया गया, तो इसकी सजा भी प्रकृति की ओर से मिले बिना न रहेगी। बीमारियों के या किसी और कष्ट के रूप में वह सजा भोगनी ही पड़ेगी । शरीर श्रम में जो समय लगता है, वह व्यर्थ नहीं जाता। इसका प्रतिफल अवश्य मिलता है। उत्तम आरोग्य प्राप्त होता है। शारीरिक रोग का जैसे मन पर असर होता है, वैसे ही शारीरिक आरोग्य का भी होता है, यह अनुभव सिद्ध है
(क) आलस्य से क्या सजा भोगनी पड़ती है ? 
(ख) शरीर श्रम का क्या प्रतिफल मिलता है ? 
(ग) मोटे टाइप के अंशों का अर्थ स्पष्ट कीजिए । 
(घ) ऊपर लिखे गद्य भाग का उपयुक्त शीर्षक लिखिए । 

(१३) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९७५

(१) भारत में पर्वतारोहण की कहानी भी कुछ कम पुरानी नहीं है। ऋषि, मुनि और हमारे देवता सदा से हिमालय की चोटियों पर जा जाकर जप-तप करते रहें हैं कुरु क्षेत्र में महायुद्ध के पश्चात् महाराजा युधिष्ठर आर से कोई पाँच हजार वर्ष पूर्व अपना सारा राजपाट छोड़कर शान्ति की खोज में अपने चारों भाइयों और द्रोपदी के साथ हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों की ओर चल पड़े थे। कहा जाता है कि उनके चार भाइयों और द्रोपदी ने मार्ग में ही प्राण त्याग दिये और केवल युधिष्ठर और उनका भक्त कुत्ता ही शिखर तक पहुँचे थे । यह चोटी आज भी मध्य हिमालय पंचे चूली के नाम । से पुकारी जाती है ।
(क) भारत में पर्वतारोहण का आरम्भ कब से हुआ ?
(ख) गद्यांश के अनुसार हिमालय पर जाने का क्या उद्देश्य रहता था ?
(ग) मोटे टाइप के शब्दों का अर्थ स्पष्ट कीजिए । 
(घ) ऊपर लिखे गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिये ।

(१४) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९७७

देश प्रेम स्वाभाविक है और हमारे ऊपर देश का अधिकार भी है। जिस प्रकार हम अपने माता-पिता के उपकारों का बदला नहीं चका सकते, उसी

प्रकार देश के उपकारों से उऋण नहीं हो सकते । देश प्रेम का अर्थ है, देश की संस्थाओं से प्रेम, देश के रीति रिवाज और वस्तुओं, भाषा, वेश, "भूमि आदि से प्रेम । सच्चे प्रेमी के लिए अपने देश की रज का कण-कण पवित्र होता है। उसकी भाषा का माधुर्य उसके लिए पीयूष के समान होता है
(क) ऊपर के गद्यांश का शीर्षक लिखिए ।
(ख) मोटे टाइप के अंशों का अर्थ स्पष्ट कीजिए । 
(ग) लेखक ने देश-प्रेम का क्या तात्पर्य बताया है ? 
(घ) सच्चे देश प्रेमी की क्या पहिचान है ?

आदर्श अपठित पद्यांश

( १ )
किसान ! तेरी कुटी, राज भवन अनुहार ।
एक स्वेद कण ही रहा, मोती मोल हजार ।
ऊँचे रवि नीचे धरा, तपित रही तन ताप ॥
लिखित बने नहिं हीनता, दीन कृषक की हाय ॥
(अ) दोहों का उचित शीर्षक दीजिए ।
(ब) दोहों का सरल अर्थ लिखिए ।
(स) प्रथम दोहे में अलंकार निर्देश कीजिए ।
(द) रवि, धरा कृषक के विभिन्नात्मक (पर्यायवाची) शब्द दीजिए । 
उत्तर- (अ) शीर्षक किसान

(ब) सरलार्थ ।

कवि भारतीय किसान के विषय में कहता है कि-
हे किसान ! तेरी टूटी फूटी झोंपड़ी राजमहलों के समान है और श्रम से निर्मित एक पसीने की बंद हजारों मोतियों के मूल्य के समान है।

आकाश में सूर्य और नीचे पृथ्वी गर्भ होकर तेरे शरीर को तपा डालती है। निर्धन किसानों की ऐसी बुरी दशा है कि उनका वर्णन लेखनी से भी लिखते नहीं बनता है ।
(अ) अलंकार निर्देश—उपमा अलंकार है ।
(ब) पर्यायवाची शब्द प्रकरण में देखिये ।
( २ )
हाय हृदय सर चिन्तानल में बिल्कुल सूख गया है।
पाप ताप निधि में मेरा, यह जीवन डूब गया है ॥

कहाँ छिपे हो ग्राह ग्रसित, गजराज छुड़ाने वाले । 
जीवन ऋण में अद्वितीय उत्साह बढ़ाने वाले || 
मुरझाई आशा लतिका को एक बार लहरा दो । 
दर्शन की प्यासी आँखों में रूप सुधा बरसा दी || 
बुझते हुए हृदय दीपक को, जीवन धन ! सरसा दो । 
अशरण शरण कहानी, अपनी मुझ पर अब दरसा दो || 
(अ) 'ग्राह ग्रसित गजराज छुड़ाने वाले' में कौन सा अलंकार है ? 
(ब) पद्य का आशय व्यक्त कीजिए ।
(स) भगवान को कवि ने किन-किन नामों से पुकारा है ? 
(द) चिन्ता की अनल से उपमा क्यों दी गयी ?

( ३ )
जिसके लिए प्रतापसिंह ने धूल जंगलों की छानी । 
जिस पर निज सर्वस्व लुटाकर, भामाशाह बना दानी ॥ 
जान गँवाकर वीर हकीकत ने, रक्खा जिसका पानी । 
बन्दा बैरागी ने हँसकर, जिस पर की कुरबानी ॥ 
आज हमारे रहते उसका, हो सकता अपमान नहीं । 
प्यारा हिन्दुस्तान कभी, सह सकता अपमान नही || 
गौरी, गजनी, गुलाम, लोदी कर न सके विस्मार जिसे । 
मिटा न पायी नादिरशाही तैमुरी तलवार जिसे || 
तहस नहस कर सका न औरंगजेबी अत्याचार जिसे । 
कर न सके बरबाद अलाउद्दीन और बख्तयार जिसे || 
मिटा सकेगा उसको कोई, अब उतना बलवान नहीं । 
प्यारा हिन्दुस्तान कभी, सह सकता अपमान नहीं ||
(अ) पद्य खण्ड का उचित शीर्षक दीजिए ।
(ब) भामाशाह किस प्रकार दानी कहलाया ? प्राचीनकाल के प्रसिद्ध दानियों के नाम लिखिए ।
(स) धूल जंगलों की छानना, पानी रखना, विस्मार करना का अर्थ लिख-
कर वाक्य प्रयोग कीजिए ।
(द) भारतवर्ष को मिटाने का किस-किस ने प्रयत्न किया था । किसी
एक का वर्णन कीजिए ।
कठिन शब्दार्थ - सर्वस्व = सब कुछ । कुरबानी = बलिदान होना । विस्मार= नष्ट-भ्रष्ट करना ।

(04)
लाल, पीले, श्वेत और नीले वस्त्र धारकर,
घरकर से निकल आये फूल, कहाँ जाने को ? 
पहिन रुचिर परिधान नव पल्लवों का,
पादप खण्ड हैं किसे आदर दिखाने को ? 
क्यों है बनी ठनी लीला ललित लताएँ सभी,
कोयल है कूक रही किसको रिझाने को ?
कौन आ रहा है, मुझको भी बतादो जरा,
वायु क्यों लुटाता है सुगन्धि के खजाने को ?
कठिन शब्दार्थ-परिधान = वस्त्र | पल्लव = पत्ता । पादप पेड़ । लीला = चंचल, चलायमान । ललित सुन्दर ।
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( ५ )
कुसुमित होते, फूलते हो , मुरझाते तुम,
सुमन कभी तो एक दो दिन जिया करो ।
अति मधु पीने को अनेक चंचरीक उन्हें, 
गत मधु होकर निराश न किया करो । 
होकर प्रचालित प्रभात के पवन द्वारा, 
झूमझूम झौंके मन्द मन्द ही लिया करो ।
देखी निज जीवन रहस्य अपने में छिपा,
हँस पड़ते ही कभी बोल भी दिया करो ।
(अ ) कविता का उचित शीर्षक दीजिए ।
(ब) कविता का अर्थ सरल हिन्दी में लिखिए ।
(स) सुमन, पवन, प्रभात के पर्यायवाची शब्द लिखिए ।

कठिन शब्दार्थ-

कुसुमित = खिलना । चंचरीक = मधुप, भौंरा । प्रचालित =जो चलाया गया हो ।
(अ) उपर्युक्त पद्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
(ब) यहाँ कवि किसके आने की बात पूछ रहा है ? उसकी अगवानी के लिए कौन-कौन क्या तैयारी कर रहे हैं ?
(स) फूल और वायु के पर्यायवाची शब्द लिखिए । 
(द) कविता में कौनसा रस और अलंकार है ?

(६ )
कर दिया मधु और सौरभ, दान सारा एक दिन, 
किन्तु रोता कौन है, तेरे लिए दानी सुमन ।
व्यथित हो फल ! किसको सुख दिया संसार ने, 
स्वार्थमय सबको बनाया, है यहाँ कर्त्तार ने, 
विश्व में हे फूल : तू सबक हृदय भाता रहा । 
दान कर सर्वस्व फिर भी, हाय हर्षाता रहा । 
जब न तेरी ही दशा पर, दुःख हुआ संसार को, 
कौन रोयेगा सुमन ! हमसे मनुज निस्सार को ।
(अ) कवि की उक्ति किसके प्रति है ? 
(ब) सुमन और कर्त्तार के पर्यायवाची शब्द लिखिए । 
(स) कविता का सरल अर्थ लिखिए ।
(द) इस कविता से आपको क्या शिक्षा मिलती है ?

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कठिन शब्दार्थ — 

मधु मकरन्द । सौरभ = सुगन्धि । व्यथित = दुःखी । कर्त्तार-परमात्मा ।
( ७ )
मेरे हृदय के हर्ष हा ! अभिमन्यु अब है तू कहाँ, 
हग खोलकर बेटा ! तनिक तो देख हम सबको यहाँ । 
मामा खड़े हैं, पास तेरे, तू यहीं पर है पड़ा, 
निज गुरुजनों के मान का तो ध्यान था तुमको बड़ा । 
व्याकुल तनिक भी देखकर तू धैर्य देता था मुझे 
पर आज मेरे पुत्र प्यारे ! हो गया है क्या तुझे, 
धात्री सुभद्रा को समझकर माँ मुझे था मानता, 
पर आज तू ऐसा हुआ मानो न था पहचानता । 
(अ) कविता में किस समय का दृश्य चित्रण किया गया है, 
(ब) उक्त कविता में कौनसा रस है ?
(स) 'मेरे दृश्य के हर्ष' से क्या तात्पर्य है 
(द) मामा का संकेत किसके प्रति ?

(८) जू० हा० स्कूल परीक्षा १६७३

है कार्य ऐसा कौन सा साधे न जिसको एकता ? 
देता नहीं अद्भुत अलौकिक शक्ति किसको एकता?
दो एक एकादश हुए, किसने नहीं देखे सुने ? 
हाँ, शून्य के भी योग से हैं अंक होते दस गुने ।।
(क)उपर्युक्त पद्य का मूल भाव स्पष्ट कीजिए। 
(ख) चौथी पंक्ति का मूल भाव स्पष्ट कीजिए
(ग) उक्त पद्य का उचित शीर्षक लिखिए ।

(६) जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९७४)
भूलोक का गौरव, प्रकृति का पुराय लोलास्थल कहाँ । 
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगा जल कहाँ । 
सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है । 
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन ? भारतवर्ष है। 
(क) उपर्युक्त पद्य का आशय अपने शब्दों में लिखिए । 
(ख) प्रथम पंक्ति का अर्थ लिखिए ।
(ग) देश-प्रेम की किसी कविता की चार पंक्तियाँ अपनी स्मृति से लिखिए ।

(१०) जू० जू० हा० स्कूल परीक्षा सन् १९७५ 
उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती । 
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती ॥
उसी उदार की सदा संजीव कीर्ति कूजती । 
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती ॥ 
अखण्ड नात्म भाव जो असीम विश्व में भरे । 
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।

(क) समस्त सृष्टि किसका पूजन करती है 
(ख) पाँचवी तथा छठी पंक्तियों की व्याख्या कीजिए । 

(११) ज० हा ० स्कूल परीक्षा सन् १९७७ 
शिशु तेरी अनुपम छवि निहार । 
मिल नाता हमको स्वर्गदार । 
नभ में मयंक लगता रुचिकर, 
सरवर में विकसित कमल सुघर, 
उपवन में है गुलाब सुन्दर, 
पर माँ की गोदी में इनसे, 
बढ़कर तेरी छवि है अपार ॥
क) उपर्युक्त कविता का शीर्षक लिखिए ।
(ख) कवि ने किन-किन वस्तुओं से शिशु को अधिक सुन्दर बताया है। 
(ग) कविता का भावार्थ लिखिए ।

प्रश्न - अपठित गद्यांश कैसे हल करने चाहिए ?
उत्तर - अपठित गद्य अथवा पद्य खन्ड को देखकर एकदम उसे हल करने में नहीं लग जाना चाहिये । वरन उसे हल करते समय निम्न- लिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए ।

उद्धृत अवतरण को कई बार ध्यानपूर्वक पढ़कर उसका मनन करना चाहिए । जब तक समस्त अवतरण का भाव हृदयंगम न हो जाए तब तक उसे बार-बार पढ़ना चाहिए ।

(२) रेखांकित या मोटे टाइप में छपे हुए अंशों की व्याख्या एवं उनके अर्थ को स्पष्ट तथा सरल शब्दों में प्रकट करना चाहिए ।

३) अपठित अवतरण की व्याख्या, सारांश, आशय और भावार्थ या तात्पर्य लिखने में बहुत अन्तर है । अतः इनको भली भाँति समझकर लिखना चाहिए। बिना सोचे-समझे लिख डालने से अर्थ का अनर्थ हो जाता है । फलतः छात्र परीक्षा में असफल रह जाते हैं ।

प्रश्न - व्याख्या किसे कहते हैं ?
उत्तर - किसी बात को समझने के लिए उसका विस्तृत और स्पष्ट अर्थ लिखना, व्याख्या कहलाता है। अवतरण में जो विचार सूत्र रूप में वर्णित होते हैं । व्याख्या में उन विचारों को उदाहरण द्वारा अपना मत प्रकट करके स्पष्ट कर दिया जाता है । तात्पर्य यह है कि व्याख्या में भाषा, भाव एवं विचार आदि सभी बातों पर प्रकाश डाला जाता है और प्रत्येक विचार- धारा को सरल एवं सुबोध बना दिया जाता है ।

प्रश्न - सारांश किसे कहते हैं ?
उत्तर - सारांश में अवतरण का सार उपयुक्त शब्दों में ही प्रकट किया जाता है । इसमें नपे-तुले शब्द होते हैं । व्यर्थ के शब्द के लिए इसमें स्थान नहीं होता । अवतरण में विस्तृत रूप से वर्णित बात सारांश में सूत्र रूप से प्रकट की जाती है । सारांश जितना ही संक्षिप्त हो उतना ही अच्छा है ।


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