हर्षवर्धन का जीवन परिचय - Biography of Harshavardhana

हर्षवर्धन का जीवन परिचय - Biography of Harshavardhana

हर्षवर्धन - Harshavardhana

रानी यशोमति के गर्भ से ५६० ई० में हर्ष का जन्म हुआ था । उसके पिता प्रभाकर वर्धन थानेश्वर शासक थे, जिन्होंने भारत पर आक्रमण करने वाले हूणों का बड़ी कुशलता से दमन किया था। पिता की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन के बड़े भाई, राज्यवर्धन गद्दी पर बैठे | भाई राज्यवर्धन की मृत्यु पर शीलादित्य उपनाम ग्रहण करके हर्ष ६०६ ई० में कन्नौज के सिंहासन पर बैठा । हर्ष के कर्मचारियों ने उसे दिग्वजय के लिये प्रेरित किया । हर्ष ने पहले शशांक को परास्त किया, उसके बाद बहन राज्यश्री का पता लगाया, जो जंगल में चिता में जलने जा रही थी और उसे जीवन पर्यन्त अपने पास रखा । अपनी योग्यता के बल पर वह ४० वर्ष से अधिक समय तक शान्ति के साथ राज्य करने में समर्थ रहा । आरम्भ में वह शैव किन्तु दिग्वजयों के उपरान्त उसने तथा उसकी बहन राज्यश्री ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। हर्ष ने संस्कृत भाषा में "रत्नावली" "नागानन्द" और "प्रियदर्शिका" नामक नाटक लिखे, साथ ही उसने एक व्याकरण ग्रन्थ की भी रचना की। हर्ष सरकारी जमीन की या विद्वानों को पुरुस्कृत करने में और दूसरा चतुर्थाश विभिन्न सम्प्रदायों को दान देने में खर्च करता था। उसने अपने राज्य में सर्वत्र माँसाहार का निषेध कर दिया था । 

हेनसाँग ने उस काल के नाना प्रकार के वस्त्रों का विशेष उल्लेख किया हर्ष बहुत उदार तथा दयाल प्रकृति का शासक था । वह एक साथ ही राजा और विद्रान. राजसी और साध स्वभाव का था । बौद्ध धर्म का अध्ययन पूरा कर हेनसाँग चीन लौट गया | उसने लिखा है - "मैं अनेक राजाओं के सम्पर्क में आया किन्त हरी मैने अनेक देशों में भ्रमण किया है किन्तु भारत जैसा कोई देश नहीं । भारत वावर है और उसकी महत्ता का मूल है - उसकी जनता तथा हर्ष जैसे उसके शासक ,

प्रश्नोत्तर 

प्रश्न १. हर्षवर्धन किन परिस्थितियों में सिंहासन पर बैठा ?

उत्तर - हर्षवर्धन अपने भाई राज्यवर्धन की मृत्यु पर अत्यधिक दुःखी हुआ और राजपाट छोड़ने को तैयार हो गया । मन्त्रियों के समझाने पर राजा शीलादित्य उपनाम ग्रहण करके हर्ष ६०६ ई० में कन्नौज के सिंहासन पर बैठा।

प्रश्न २. हर्ष के दान से सम्बन्धित किसी घटना का उल्लेख करो ।

उत्तर - एक बार राजा हर्षवर्धन दान-दक्षिणा की सभी वस्तुओं को, यहाँ तक कि राज्यकोष की सम्पूर्ण सम्पत्ति और अपने शरीर के समस्त आभूषणों को पण्डितों व विद्वानों को जब दान दे चुके तो एक व्यक्ति ऐसा रह गया जिसे देने के लिये उसके पास कुछ शेष नहीं था। दानार्थी बोला- राजन ! आपके पास मुझे देने के लिये कुछ नहीं बचा, मैं वापस जाता हूँ । राजा ने कहा- ठहरो! अभी मेरे वस्त्र शेष हैं जिन्हें मैंने दान नहीं दिया है और पास खड़ी बहन से अपना तन ढकने के लिये दूसरा वस्त्र माँगकर उसने अपने वस्त्र उतारकर उस याचक को दे दिये ।

प्रश्न ३. हर्षकालीन भारत का वर्णन करो ।

उत्तर - हर्ष के समय में, भारत को अपने इतिहास के एक अत्यन्त भव्य युग का दखन का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

प्रश्न ४. ह्वेनसाँग ने हर्ष की प्रशंसा में क्या कहा है ?

उत्तर - हेनसाँग ने हर्ष की प्रशंसा में कहा है कि 'अनेक राजाओं के सम्पक मन किन्तु हर्ष जैसा कोई नहीं । मैंने अनेक देशों में भ्रमण किया है किन्तु भारत जसा । नहीं। भारत वास्तव में महान देश है और उसकी महत्ता का मल है - उसका जनता जैसे उसके शासक ।"मूल है - उसकी जनता तथा हर्ष जैसे शासक। "

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