महर्षि दधीचि का जीवन परिचय - Maharshi Dadhichi

महर्षि दधीचि का जीवन परिचय - Maharshi Dadhichi

महर्षि दधीचि ( Maharshi Dadhichi )

महर्षि दधीचि महान तपस्वी और ज्ञानी थे । वे नैमिषारण्य के घने वन में आश्रम बनाकर रहते थे । ज्ञान के अक्षय भण्डार के साथ ही महर्षि के पास दान, दया और त्याग के रूप में भी अमूल्य सम्पदा थी । महर्षि अपने आश्रम में शान्तिपूर्वक तप करते थे किन्तु देवासुर संग्राम के बारे में सोचकर कभी-कभी उद्विन हो जाते थे । उनकी इच्छा थी कि शीघ्र ही देव और दानव युद्ध से विमुख हो जायें और प्रेम भाव से मिल-जुलकर रहें किन्तु असुरों का आतंक बढ़ता ही जा रहा था । देवगण, त्रस्त और पीड़ित थे । देवों को युद्ध में सफलता का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था | हताश देवगण, देवराज इन्द्र के पास गये। उन्होंने ब्रह्मा जी से कोई उपाय पूछने के लिये इन्द्र से आग्रह किया । इन्द्र मान गये और उन्होंने ब्रह्मा के पास जाकर उन्हें अपनी चिन्ता कह सुनाई । ब्रह्मा बोले - देवराज इन्द्र, त्याग और तपस्या के बल पर किसी भी कार्य में सफलता पाई जा सकती है । त्याग के बिना संसार में सफलता पाना दुष्कर है । इस समय पृथ्वी पर महर्षि दधीचि हैं । योग बल से उन्होंने अपनी अस्थियाँ बहुत मजबूत बना ली हैं । उनकी अस्थियों से बना हुआ अस्त्र वज्र होगा । यदि देवता युद्ध में उसका प्रयोग करें तो दानवों की पराजय निश्चित है । देवराज इन्द्र ने आश्चर्य से पूछा - किन्तु भगवन ! वे तो जीवित हैं । उनकी अस्थियाँ हमें कैसे मिल सकती हैं ? ब्रह्माजी ने कहा - इस बात का उत्तर महर्षि दधीचि ही दे सकते हैं । देवराज इन्द्र चिन्ता में पड़ गये । 

इन्द्र एक ब्राह्मण के वेश में महर्षि दधीचि के पास गये किन्तु महर्षि द्वारा पहचान लिये जाने से लज्जित हये और बोले - महर्षि ! क्षमा करें! मैंने आपके ध्यान में विघ्न डाला। आप ज्ञानी हैं । ब्रह्माजी ने बताया है कि यदि आपकी अस्थियों से अस्त्र बनाया जाये तो वह वज्र ही होगा और उससे दानवों की पराजय निश्चित है । वृत्रासुर का वध करने के लिये हमें इसी वज्र की आवश्यकता है ।


महर्षि को मौन देखकर देवराज की चिन्ता बढ़ गयी किन्तु तत्क्षण ही महर्षि बोल पड़ेदेवराज, आपकी इच्छा पूरी होगी । देवता, दानवों को अवश्य परास्त करेंगे । यह तो मेरे लिये गौरव की बात है । आप मेरी अस्थियों से वज्र बनायें और असुरों का विनाश कर संसार में शान्ति लायें । इतना कहकर उन्होंने अपने नेत्र बन्द कर लिये और योगबल से अपने प्राण छोड़ दिये । उनका शरीर निर्जीव हो गया । देवराज ने उनकी अस्थियों को मस्तक से लगाया और उनसे वज्र बनवाया । वज्र के प्रहार से वृत्रासुर मारा गया । असुरों के पैर उखड़ गये । दानवों को पराजित कर देवगण विजयी हुये । धन्य हैं महर्षि दधीचि और धन्य है उनका त्याग ।


अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न १. 'महर्षि दधीचि का त्याग एक अनुपम उदाहरण है ।' इस कथन की सार्थकता स्पष्ट करो ।

उत्तर - जब देवराज इन्द्र ने महर्षि दधीचि से कहा कि ब्रह्माजी ने बताया है कि यदि आपकी अस्थियों से अस्त्र बनाया जाये तो वह वज्र ही होगा और उससे दानवों की पराजय निश्चित है । तब महर्षि ने कहा यह तो मेरे लिये गौरव की बात है । आप मेरी अस्थियों से वज्र बनायें और असुरों का विनाश कर संसार में शान्ति लायें । इतना कहकर उन्होंने अपने नेत्र बन्द कर लिये और योगबल से अपने प्राण छोड़ दिये । त्याग का यह एक अनुपम उदाहरण है।

प्रश्न २. महर्षि दधीचि ने देवताओं की क्या सहायता की ?

उत्तर - महर्षि दधीचि ने दानवों की पराजय हेतु अपने शरीर की अस्थियों से अस्त्र बनाने के लिये अपने शरीर का त्याग करके देवताओं की सहायता की ।

प्रश्न ३. नैमिषारण्य में प्रतिवर्ष फाल्गुन में मेला क्यों लगता है ?

उत्तर - नैमिषारण्य में प्रतिवर्ष फाल्गुन में मेला इसलिये लगता है क्योंकि यहाँ के पवित्र दधीचि कुण्ड में स्नान का विशेष पुण्य माना जाता है ।

प्रश्न ४. महर्षि दधीचि के त्याग की कथा संक्षेप में लिखो । 

उत्तर - छात्र इसके उत्तर हेतु पाठ का साराँश पढ़कर स्वयं लिखें ।

हिंदी लोकोक्तियाँ / कहावतें एवं उनके अर्थ
सभी प्रकार के आवेदन फॉर्मेट डाउनलोड करे।

Post a Comment

0 Comments