हिंदी लोकोक्तियाँ / कहावतें एवं उनके अर्थ - PDF Download

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'लोकोक्ति' का अर्थ है 'लोक में प्रचलित उक्ति' । जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को 'कहावत' कहते हैं। उदाहरण :

उस दिन बात-ही बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इस पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' । यहाँ 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है 'एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता'।

महावरा और लोकोक्ति में अंतर

दोनों में अंतर इस प्रकार हैं -

(i) मुहावरा वाक्यांश होता है, जबकि लोकोक्ति एक पूरा वाक्य । दूसरे शब्दों में, मुहावरों में उद्देश्य और विधेय नहीं होता, जबकि लोकोक्ति में उद्देश्य और विधेय होता है।

(ii) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है।
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(iii) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं जबकि लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं।

लोकोक्तियाँ/कहावतें एवं उनके अर्थ-

  1. अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप - मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट करना और तुच्छ को सँजोना
  2. अधजल गगरी छलकत जाय - थोड़ी विद्या, धन या बल होने पर इतराना
  3. अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना - निर्दयी या मूर्ख के आगे दुःखड़ा रोना बेकार होता है
  4. अपनी करनी पार उतरनी - किये का फल भोगना
  5. अपना टेढर न देखे और दसरे की फूली निहारे - अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना
  6. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग - परस्पर संगठन या मेल न रखना
  7. आप डूबे जग डूबा - जो स्वयं बुरा होता है, दसरों को भी बुरा समझता है
  8. आग लगन्ते झोपडा जो निकले सो लाभ - नष्ट होती हुई वस्तुओं में से जो निकल आये वह लाभ ही है
  9. आग लगाकर जमालो दूर खड़ी - झगड़ा लगाकर अलग हो जाना
  10. आगे नाथ न पीछे पगहा - अपना कोई न होना, घर का अकेला होना
  11. आगे कुआँ, पीछे खाई - हर तरफ हानि की आशंका
  12. आँख का अंधा नाम नयनसुख - गुण के विरुद्ध नाम
  13. आधा तीतर आधा बटेर - बेमेल स्थिति
  14. आप भला तो जग भला - स्वयं अच्छे तो संसार अच्छा
  15. आम का आम गुठली का दाम - सब तरह से लाभ-ही-लाभ
  16. आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास - करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और
  17. इतनी-सी जान, गज भर की जबान - छोटा होना पर बढ़-बढ़कर बोलना
  18. ईंट का जवाब पत्थर- दुष्ट के साथ दुष्टता करना
  19. इस हाथ दे, उस हाथ ले - कर्मों का फल शीघ्र पाना
  20. ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया - कहीं सुख, कहीं दुःख
  21. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे - अपराधी ही पकड़ने वाले को डॉट बताये
  22. उद्योगिनं पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी - उद्योगी को ही धन मिलता है
  23. ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी - बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा
  24. ऊँची दूकान फीका पकवान - बाहर ढकोसला भीतर कुछ नहीं
  25. ऊँचे चढ़ के देखा, तो घर- घर एकै लेखा - सभी एक समान
  26. ऊँट किस करवट बैठता है - किसकी जीत होती है
  27. ऊँट के मुँह में जीरा - जरूरत से बहुत कम
  28. ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी - जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना
  29. ऊधो का लेना न माधो का देना - लटपट से अलग रहना
  30. एक पंथ दो काज - एक नहीं, दो लाभ
  31. एक तो करेला आप तीता दूजे नीम चढ़ा - बुरे का और बुरे से संग होना
  32. एक अनार सौ बीमार- एक वस्तु को सभी चाहने वाले
  33. एक तो चोरी दूसरे सीनाजोरी - दोष करके न मानना
  34. एक म्यान में दो तलवार - एक स्थान पर दो उग्र विचार वाले
  35. ओछे की प्रीत बालू की भीत - नीचों का प्रेम क्षणिक
  36. ओस चाटने से प्यास नहीं बूझती - अधिक कंजूसी से काम नहीं चलता
  37. कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कंबल भींगे पानी - प्रकृतिविरुद्ध काम
  38. कहाँ राजा भोज कहाँ भोजवा (गंगू) तेली - छोटे का बड़े के साथ मिलान करना
  39. कहे खेत की, सुने खलिहान की - हुक्म कुछ और करना कुछ और
  40. कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा - इधर-उधर से सामान जुटाकर काम करना
  41. काला अक्षर भैस बराबर - निरा अनपढ़
  42. काबुल में क्या गदहे नहीं होते - अच्छे-बुरे सभी जगह हैं
  43. का वर्षा जब कृषि सुखाने - मौक़ा बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है
  44. काठ की हाँड़ी दूसरी बार नहीं चढ़ती - कपट का फल अच्छा नहीं होता
  45. किसी का घर जले, कोई तापे - दूसरे का दुःख में देखकर अपने को सुखी मानना 
  46. खरी मजूरी चोखा काम - अच्छे मुआवजे में ही अच्छा फल प्राप्त होना
  47. खोदा पहाड़ निकली चुहिया- कठिन परिश्रम, थोड़ा लाभ
  48. खेत खाये गदहा, मार खाये जोलहा - अपराध करे कोई, दण्ड मिले किसी और को 
  49. गाँव का जोगी जोगडा, आन गाँव का सिद्ध - बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की क़द्र (क़दर) नहीं
  50. गुड़ खाय गुलगुले से परहेज़ - बनावटी परहेज़
  51. गोद में छोरा नगर में ढिंढोरा - पास की वस्तु का दूर जाकर ढूँढ़ना
  52. गाछे कटहल, ओठे तेल - काम होने के पहले ही फल पाने की इच्छा
  53. गरजे सो बरसे नहीं - बकवादी कुछ नहीं करता
  54. गुरु गुड़, चेला चीनी - गुरु से शिष्य का ज्यादा क़ाबिल हो जाना
  55. घड़ी में घर जले, नौ घड़ी भद्रा - हानि के समय सुअवसर-कुअवसर पर ध्यान न देना
  56. घर पर फूस नहीं, नाम धनपत - गुण कुछ नहीं, पर गुणी कहलाना
  57. घर का भेदी लंका ढाए -आपस की फूट से हानि होती है
  58. घर की मुर्गी दाल बराबर - घर की वस्तु का कोई आदर नहीं करना
  59. घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना - दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना
  60. घी का लड्डू टेढ़ा भला - लाभदायक वस्तु किसी तरह की क्यों न हो
  61. चोर की दाढ़ी में तिनका - जो दोषी होता है वह खुद डरता रहता है।
  62. चूहे घर में दण्ड पेलते हैं - अभाव-ही-अभाव
  63. चमड़ी जाय, पर दमड़ी न जाय - महा कंजूस
  64. ठठेरे-ठठेरे बदलौअल -चालाक को चालाक से काम पड़ना
  65. ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका - एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना
  66. तीन कनौजिया, तेरह चूल्हा - जितने आदमी उतने विचार
  67. तेली का तेल जले और मशालची का सिर दुखे (छाती फाटे) - खर्च किसी का हो और बुरा किसी और को मालूम हो
  68. तन पर नहीं लत्ता पान खाय अलबत्ता - झुठा दिखावा करना
  69. तीन लोक से मथुरा न्यारीसे मथरा न्यारी - निराला ढंग
  70. तुम डाल-डाल तो हम पात-पात - किसी की चाल को खूब समझते हुए चलना
  71. थूक कर चाटना ठीक नहीं - देकर लेना ठीक नहीं, वचन-भंग करना, अनुचित 
  72. दमड़ी की हाँड़ी गयी, कुत्ते की जात पहचानी गयी - मामूली वस्तु में दूसरे की पहचान
  73. दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली - काम साधारण, खर्च अधिक
  74. दाल-भात में मूसलचन्द - बेकार दख़ल देना
  75. दुधारु गाय की दो लात भी भली - जिससे लाभ होता हो, उसकी बातें भी सह लेनी चाहिए
  76. दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंक कर पीता है - एक बार धोखा खा जाने पर सावधान हो जाना
  77. दूर का ढोल सुहावना - दूर से कोई चीज अच्छी लगती है
  78. देशी मुर्गी, विलायती बोल - बेमेल काम करना
  79. धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का - निकम्मा, व्यर्थ इधर-उधर डोलनेवाला 
  80. नक़्क़ारखाने में तूती की आवाज - सुनवाई न होना
  81. न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी - न बड़ा प्रबंध होगा न काम होगा
  82. रोज़ा बख्शने गये, नमाज़ गले पड़ी - लाभ के बदले हानि
  83. न देने के नौ बहाने - न देने के बहुत-से बहाने
  84. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी - झगड़े के कारण को नष्ट करना
  85. नदी में रहकर मगर से वैर - जिसके अधिकार में रहना, उसी से वैर करना
  86. नाच न जाने आँगन टेढ़ा - खुद तो ज्ञान नहीं रखना और सामग्री या दूसरों को दोष देना
  87. नौ की लकड़ी, नब्बे खर्च - काम साधारण, खर्च अधिक
  88. नौ नगद, न तेरह उधार - अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा
  89. नीम हकीम खतरे जान - अयोग्य से हानि
  90. नाम बड़े, पर दर्शन थोड़े - गुण से अधिक बड़ाई
  91. पढे फारसी बेचे तेल देखो यह क़िस्मत (या क़दरत) का खेल - भाग्यहीन होना 
  92. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं - पराधीनता में सुख नहीं
  93. पहले भीतर तब देवता-पितर - पेट-पजा सबसे प्रधान
  94. पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची - ज़बरदस्ती किसी के सर पड़ना
  95. पराये धन पर लक्ष्मीनारायण - दूसरे का धन पाकर अधिकार जमाना
  96. पानी पीकर जात पूछना - कोई काम कर चुकने के बाद उसके औचित्य पर विचार करना
  97. पंच परमेश्वर - पाँच पंचों की राय
  98. नाचे कूदे तोड़े तान, ताको दुनिया राखे मान - आडम्बर दिखानेवाला मान पाता है
  99. बड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल - श्रेष्ठ वंश में बुरे का पैदा होना
  100. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद - मुर्ख गुण की क़द्र करना नहीं जानता
  101. बाँझ क्या जाने प्रसव की पीडा - जिसको दुःख नहीं हुआ है वह दूसरे के दुःख को समझ नहीं सकता
  102. बिल्ली के भाग्य से छींका (सिकहर) टूटा - संयोग अच्छा लग गय
  103. बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय.- जैसी करनी, वैसी भरनी
  104. बैल का बैल गया नौ हाथ का पगहा भी गया - बहुत बड़ा घाटा
  105. बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी - भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी 
  106. बेकार से बेगार भली - चुपचाप बैठे रहने की अपेक्षा कुछ काम करना
  107. बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह - बड़ा तो जैसा है, छोटा उससे बढ़कर है
  108. भइ गति साँप-छछूदर केरी - दुविधा में पड़ना
  109. भैंस के आगे बीन बजावे, भैंस रही पगुराय - मूर्ख को गुण सिखाना व्यर्थ है
  110. भागते भूत की लँगोटी ही सही - जाते हुए माल में से जो मिल जाय वही बहुत है 
  111.  मियाँ की दौड़ मस्जिद तक - किसी के कार्यक्षेत्र या विचार शक्ति का सीमित होना 
  112. मन चंगा तो कठौती में गंगा - हृदय पवित्र तो सब कुछ ठीक
  113. मुँह में राम, बगल में छुरी - कपटी
  114. मान न मान मैं तेरा मेहामन - ज़बरदस्ती किसी के गले पड़ना
  115. मेढ़की को भी जुकाम - ओछे का इतराना
  116. मार-मार कर हकीम बनाना - ज़बरदस्ती आगे बढाना
  117. माले मुफ्त दिले बेरहम - मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना
  118. मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काज़ी - जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राज़ी हों तो दूसरे को इसमें क्या
  119. मोहरों की लूट, कोयले पर छाप - मूल्यवान वस्तुओं को छोड़कर तुच्छ वस्तुओं पर ध्यान देना
  120. मानो तो देव, नहीं तो पत्थर - विश्वास ही फलदायक
  121. मँगनी के बैल के दाँत नहीं देखे जाते - मुफ़्त मिली चीज पर तर्क व्यर्थ
  122. रस्सी जल गयी पर ऐंठन न गयी - बुरी हालत में पड़कर भी अभिमान न त्यागना 
  123. रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी - अधिक मज़ाक़ बुरा
  124. लश्कर में ऊँट बदनाम - दोष किसी का, बदनामी किसी की
  125. लूट में चरखा नफ़ा - मुफ्त में जो हाथ लगे, वही अच्छा
  126. लेना-देना साढ़े बाईस - सिर्फ मोल-तोल करना
  127. सब धान बाईस पसेरी - अच्छे-बुरे सबको एक समझना
  128. सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को - जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना 
  129. साँप मरे पर लाठी न टूटे - अपना काम हो जाय पर कोई हानि भी न हो
  130. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता - सिधाई से काम नहीं होता
  131. सारी रामायण सुन गये, सीता किसकी जोय (जोरू) - सारी बात सुन जाने पर साधारण सी बात का भी ज्ञान न होना
  132. हाथ कंगन को आरसी क्या - प्रत्यक्ष के लिए प्रमाण क्या
  133. हाथी चले बाजार, कुत्ता भूँके हजार - उचित कार्य करने में दूसरों की निन्दा की परवाह नहीं करनी चाहिए
  134. हाथी के दाँत दिखाने के और, खाने के और - बोलना कुछ, करना कुछ
  135. हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत - बेमौक़ा
  136. हंसा थे सो उड़ गये, कागा भये दीवान - नीच का सम्मान
  137. अधजल गगरी छलकत जाए - (ओछा व्यक्ति ही डीगे मारता है) भाई,६०० रुपए की नौकरी में क्यों इतराते हो ? सुना नहीं 'अधजल गगरी छलकत जाए' वाली बात होगी ।
  138. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात - (सुख के बाद दुःख आना) राम! धन का घमण्ड मत करो, 'चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात ।'
  139. मान न मान मैं तेरा मेहमान - (बिना सम्बन्ध के सम्बन्ध दिखाना) मैं तो आपको जानता भी नहीं हूँ और आप मुझे भाई कहते हैं । ठीक है, मान न मान मैं तेरा मेहमान ।
  140. ऊँची दुकान फीका पकवान - बाह्य दिखावा कुछ और वास्तविकता कुछ और ।
  141. एक पंथ दो काज - दोहरा लाभ होना ।
  142. काजल की कोठरी - बदनामी का काम ।।
  143. तिलों में तेल नहीं - लाभ की आशा नहीं ।
  144. नया नौ दिन पुराना सौ दिन - तड़क-भड़क थोड़े ही दिन रहती है । पुरानी वस्तु का अधिक उपयोगी होना ।
  145. भैंस के आगे बीन बजाना - मूर्ख के सम्मुख अपनी कला का प्रदर्शन करना ।
  146. सोने की चिड़िया - धनवान ।
  147. अन्धे के आगे रोना अपना दीदा खोना - सहानुभूति न रखने वाले के सामने अपना दुखड़ा रोना व्यर्थ है ।
  148. आगे नाथ न पीछे पगहा - किसी प्रकार का डर न होना ।
  149. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे - दोषी ही अच्छे व्यक्ति को दोषी बताए ।
  150. भागते भूत की लंगोटी भली - पूर्ण लाभ न मिलने पर आंशिक लाभ पर ही सन्तोष करना ।
  151. मन चगा तो कठौती में गंगा - मन शद्ध होने पर तीर्थयात्रा की आवश्यकता नहीं होती।
  152. अपना रख , पराया चख - अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना
  153. अपनी करनी पार उतरनी - स्वयं का परिश्रम ही काम आता है ।
  154. अंधों में काना राजा - मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है ।
  155. अंधे के हाथ बटेर लगना - अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोग से अच्छी वस्तु मिलना ।
  156. अंधा पीसे कुत्ता खाय - मूर्खों की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं /असावधानी से अयोग्य को लाभ ।
  157. अब पछताये होत क्या , जब चिड़िया चुग गई खेत - अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं ।
  158. अपनी गली में कुत्ता भी शेर बन जाता है । - ​अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान होता है 
  159. अन्धेर नगरी चौपट राजा  - प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना ।
  160. अन्धा क्या चाहे दो आँखें  - बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना 
  161. अक्ल बड़ी या भैंस - शारीरिक बल से बुद्धिबल श्रेष्ठ होता है ।
  162. अपना हाथ जगन्नाथ - अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है ।
  163. अंधा बाँटे रेवड़ी फिर - फिर अपनों को देय - स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है ।
  164. अंत भला तो सब भला - कार्य का अन्तिम चरण ही महत्त्वपूर्ण होता है ।
  165. आ बैल मुझे मार - जानबूझ कर मुसीबत में फंसना
  166. आठ कनौजिए नौ चूल्हे - फूट होना ।
  167. उल्टे बाँस बरेली को - विपरीत कार्य या आचरण करना
  168. एक हाथ से ताली नहीं बजती - लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं ।
  169. कंगाली में आटा गीला - संकट पर संकट आना ।
  170. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर - एक - दूसरे के काम आना परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं ।
  171. कहने पर कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता - कहने से जिद्दी व्यक्ति काम नहीं करता ।
  172. कोउ नृप होउ हमें का हानि - अपने काम से मतलब रखना ।
  173. कौवा चला हंस की चाल भूल गया अपनी भी चाल - दूसरों के अनधिकार अनुकरण से अपने रीति रिवाज भूल जाना ।
  174. कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना - परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहतीं ।
  175. काज परै कछ और काज सरै कछु और - दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम निकाल कर मुँह फेर लेते हैं ।
  176. खोदा पहाड़ निकली चुहिया - अधिक परिश्रम से कम लाभ होना
  177. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है । - स्पर्धावश काम करना / साथी को देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता है ।
  178. खग जाने खग हीं की - मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात भाषा समझता है ।
  179. खिसियानी बिल्ली खम्भा नोंचे - शक्तिशाली पर वश न चलने के कारण कमजोर पर क्रोध करना
  180. गागर में सागर भरना - थोड़े में बहुत कुछ कह देना
  181. गरीब तेरे तीन नाम - झूठा ,पापी , बेईमान । - गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते हैं / निर्धनता सदैव अपमानित होती है ।
  182. गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे - प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दण्ड क्यों ।
  183. गंगा गये गंगादास यमुना गये यमुनादास - अवसरवादी होना ।
  184. गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा - पास की वस्तु को दूर खोजना
  185. गरजते बादल बरसते नहीं - कहने वाले ( शोर मचाने वाले ) कुछ करते नहीं
  186. गुरु कीजै जान , पानी पीवै छान - अच्छी तरह समझ बूझकर काम करना
  187. घर - घर मिट्टी के चूल्हे हैं - सबकी एक सी स्थिति का होना सभी समान रूप से खोखले हैं ।
  188. घोड़ा घास से दोस्ती करे तो क्या खाये ? - मजदूरी लेने में संकोच कैसा
  189. घर में नहीं दाने बुढिया चली भुनाने - झूठा दिखावा करना
  190. घर आये नाग न पूजै , बाँबी पूजन जाय - अवसर का लाभ न उठाकर उसको खोज में जाना
  191. घर का जोगी जोगना ,आन गॉव का सिद्ध - विद्वान को अपने घर की अपेक्षा बाहर अधिक सन्मान / परिचित की अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर
  192. चलती का नाम गाड़ी - काम का चलते रहना / बनी बात के सब साथ होते हैं
  193. चंदन की चुटकी भली गाड़ी - अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली ।
  194. चिकने घडे पर पानी नहीं ठहरता - निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता ।
  195. चिराग तले अंधेरा - दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना
  196. चींटी के पर निकलना - बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का नष्ट होना
  197. चील के घोंसले में मॉस कहाँ ? - भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है ।
  198. चुपड़ी और दो - दो - लाभ में लाभ होना
  199. चोरी का माल मोरी में - बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है ।
  200. छछुदर के सिर में चमेली का तेल - अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु होना
  201. जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि - कवि दूर की बात सोचता है । / सीमातीत कल्पना करना |
  202. जाके पैर न फटी बिवाई , सो क्या जाने पीर पराई - जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह दूसरों का दुख क्या अनुभव करे
  203. जादू वही जो सिर चढ़कर बोले - उपाय वही अच्छा जो कारगर हो
  204. ढाक के तीन पात - सदा एक सी स्थिति बने रहना
  205. तीन बुलाए तेरह आये - अनिमन्त्रित व्यक्ति का आना ।
  206. थोथा चना बाजे घना - गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगें मारता है / आडम्बर करता है ।
  207. दूध का दूध पानी का पानी - सही सही न्याय करना ।
  208. दाल भात में मूसल चंद - किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना ।
  209. दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम - सदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना ।
  210. दैव दैव आलसी पुकारा - आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है ।
  211. न सावन सूखा न भादों हरा - सदैव एक सी तंग हालत रहना
  212. नेकी और पूछ - पूछ - भलाई करने में भला पूछना क्या ?
  213. नेकी कर कुए में डाल - मलाई कर भूल जाना चाहिये ।
  214. प्यादे से फरजी भयो टेढो - टेढो जाय - छोटा आदमी बड़े पद पर पहुंचकर इतराकर चलता है 
  215. फटा मन और फटा दूध फिर नहीं मिलता - एक बार मतभेद होने पर पुनः मेल नहीं हो सकता ।
  216. बद अच्छा , बदनाम बुरा - कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है ।
  217. बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज - बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना
  218. बॉबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूं - खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर स्वयं अलग रहना ।
  219. बाप बड़ा न भैया , सबसे बड़ा रुपया - आजकल पैसा ही सब कुछ है ।
  220. बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती - प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता ।
  221. बिच्छू का मंत्र न जाने सॉप के बिल में हाथ डाले - योग्यता के अभाव में उलझनदार काम करने का बीड़ा उठा लेना ।
  222. राम नाम जपना , पराया माल अपना - मक्कारी करना ।
  223. रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना - प्रतिदिन कमाकर खाना रोज कमाना रोज खा जाना ।
  224. लकड़ी के बल बन्दरी नाचे - भयवश ही कार्य संभव है ।
  225. लम्बा टीका मधुरी बानी दगेबाजी की यही निशानी - पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं ।
  226. लोहे को लोहा ही काटता है - बुराई को बुराई से ही जीता जाता है ।
  227. वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत - विपत्ति / अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है ।
  228. विधिकर लिखा को मेटनहारा - भाग्य को कोई बदल नहीं सकता ।
  229. शबरी के बेर - प्रेममय तुच्छ भेंट
  230. शठे शाठ्यं समाचरेत - दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये ।
  231. सांच को आँच नहीं - सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं ।
  232. सोने में सुगन्ध - अच्छे में और अच्छा ।
  233. सौ सुनार की एक लुहार की - सैंकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा ।
  234. सूप बोले तो बोले छलनी भी - दोषी का बोलना ठीक नहीं
  235. हथेली पर सरसों नहीं उगती - कार्य के अनुसार समय भी लगता है ।
  236. हथेली पर दही नहीं जमता - हर कार्य के होने में समय लगता है ।



                                                                                                                                            महत्वपूर्ण प्रश्न - उत्तर 

                                                                                                                                            लोकोक्तियाँ/कहावतें का अर्थ क्या है ?
                                                                                                                                            'लोकोक्ति' का अर्थ है 'लोक में प्रचलित उक्ति' । जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को 'कहावत' कहते हैं।

                                                                                                                                            लोकोक्तियाँ/कहावतें का अर्थ उदहारण देकर समझाईये?
                                                                                                                                            जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। उदहारण -
                                                                                                                                            उस दिन बात-ही बात में राम ने कहा, हाँ, मैं अकेला ही कुँआ खोद लूँगा। इस पर सबों ने हँसकर कहा, व्यर्थ बकबक करते हो, अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' । यहाँ 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता' लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है 'एक व्यक्ति के करने से कोई कठिन काम पूरा नहीं होता'। 

                                                                                                                                            Post a Comment

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