रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय - Biography of Rani Chennamma

 रानी चेन्नम्मा का जीवन परिचय - Biography of Rani Chennamma


रानी चेन्नम्मा - Rani Chennamma

चेन्नम्मा का जन्म सन १७७८ ई० में हुआ था । बाल्यावस्था से ही उसे घुड़सवारी, शिकार और युद्ध कला में विशेष रुचि थी । बाल्यावस्था में खेले गये कृत्रिम युद्ध के बाद कित्तर में उसे वास्तविक युद्ध में भाग लेने का अवसर मिला । राजा मल्लसर्ज रानी की राजनीति में कुशलता से प्रभावित हो चुके थे । वे शासन प्रबन्ध में उसकी सलाह लेते थे। 

मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद कित्तूर की गद्दी पर उनका पुत्र शिवलिंग रुद्रसर्ज बैठा। अस्वस्थ रहने के कारण वह अयोग्य शासक सिद्ध हुआ । शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गई। अब कित्तूर के सामने उत्तराधिकारी की समस्या आई । अंग्रेज उत्तराधिकारी को गोद लेने की अनुमति नहीं देना चाहते थे । चेन्नम्मा अंग्रेजों की चाल समझ गई थी और वह जीते जी कित्तूर को अंग्रेजों के हवाले नहीं कर सकती थी ।


चेन्नम्मा ने ब्रिटिश अधिकारियों को अपना मन्तव्य बार-बार स्पष्ट किया किन्तु वे अपनी चालें चलते ही रहे । हताश रानी को विवश होकर कित्तूर -वासियों को सचेत करना पड़ा । उसने अपने सरदारों और दरबार के अधिकारियों के सामने आवेशपूर्वक निम्नलिखित घोषणा की - "कित्तूर हमारा है हम अपने इलाके के स्वयं मालिक हैं ।" अंग्रेज कित्तूर पर अधिकार कर उस पर शासन करना चाहते हैं । वे निश्चय ही भ्रम में हैं । कित्तूर के लोग स्वतन्त्रता की रक्षा के लिये प्राणों की आहुति दे सकते हैं । हमारा एक-एक सिपाही उनके दस-दस सिपाहियों के बराबर है । कित्तूर झूकेगा नहीं, वह अपनी धरती की रक्षा के लिये अन्तिम क्षण तक लड़ेगा । रानी की ओजपूर्ण वाणी का बड़ा प्रभाव पड़ा । दरबारियों में जोश की लहर दौड़ गई । सब एक स्वर में चिल्ला उठे, "कित्तूर अमर रहे, रानी चेन्नम्मा की जय ।"


चेन्नम्मा सहृदय नारी थी । वह सर्व-धर्म समभाव में विश्वास रखती थी । रानी चेन्नम्मा को अधीनता स्वीकार करने के लिये अनेक प्रलोभन दिये गये परन्तु वीर रानी कित्तूर की स्वाधीनता को बेचना नहीं चाहती थी, वह इन प्रस्तावों पर और भी क्रुद्ध हुई। अंग्रेजों से युद्ध में चेन्नम्मा द्वारा प्रदर्शित वीरता, साहस, पराक्रम तथा देश-भक्ति कित्तूरवासियों के लिये प्रेरणा का स्रोत सिद्ध हुई । .


यद्यपि रानी चेन्नम्मा का देश-प्रेम हेतु उत्सर्ग आज से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व की घटना है तथापि कित्तूर दुर्ग के खण्डहरों को देखकर आज भी उक्त गौरव गाथा की याद आती है । बेलहोंगल में बना रानी चेन्नम्मा स्मारक तथा धारवाड़ में थैकरे के स्मारक के पास बना कित्तूर चेन्नम्मा पार्क रानी की वीरता तथा उत्सर्ग की याद दिलाते हैं ।।

अभ्यास प्रश्न 

प्रश्न १. रानी चेन्नम्मा की वीरता का परिचय देने वाले दो प्रसंगों का उल्लेख करो।

उत्तर - कित्तूर के तत्कालीन राजा मल्लसर्ज आखेट प्रिय थे । इसी बीच वे काकति आये हुये थे । उन्हें जब बाघ के आतंक की सूचना मिली तो वे उसकी खोज में निकले। सौभाग्य से बाघ का पता शीघ्र ही चल गया और राजा ने उस पर अपना बाण छोड़ दिया। बाघ घायल होकर गिर गया । राजा बाघ के निकट पहुंचे तो उनके आश्चर्य की सीमा न रही । बाघ पर एक नहीं, दो-दो बाण बिंधे थे, बाघ के निकट ही सैनिक वेश-भूषा में सजी एक सुन्दर कन्या खड़ी थी । राजा को समझने में देर नहीं लगी । दूसरा बाण वीर कन्या का ही है । राजा को देखते ही कन्या क्रोधित होकर बोली - आपको क्या अधिकार था जो आपने मेरे खेल में विघ्न डाला ! राजा मन ही मन कन्या की वीरता और सौन्दर्य पर मुग्ध हो गये और बिना कोई उत्तर दिये, वहीं बैठ गये । - शिवलिंग रुद्रसर्ज की मृत्यु के पश्चात अब कित्तूर के सामने उत्तराधिकारी की समस्या आई । अंग्रेज उत्तराधिकारी को गोद लेने की अनुमति नहीं देना चाहते थे । चेन्नम्मा अंग्रेजों की चाल समझ गई थी । वह जीते जी कित्तूर को अंग्रेजों के हवाले नहीं कर सकती थी । चेन्नम्मा ने ब्रिटिश अधिकारियों को अपना मन्तव्य बार-बार स्पष्ट किया किन्तु वे अपनी चालें चलते ही रहे । हताश रानी को विवश होकर कित्तूर -वासियों को सचेत करना पड़ा । उसने अपने सरदारों और दरबार के अधिकारियों के सामने आवेशपूर्वक निम्नलिखित घोषणा की - "कित्तूर हमारा है हम अपने इलाके के स्वयं मालिक हैं । अंग्रेज कित्तूर पर अधिकार कर उस पर शासन करना चाहते हैं । वे निश्चय ही भ्रम में हैं । कित्तूर के लोग स्वतन्त्रता की रक्षा के लिये प्राणों की आहुति दे सकते हैं । हमारा एक-एक सिपाही उनके दस-दस सिपाहियों के बराबर है । कित्तूर झुकेगा नहीं, वह अपनी धरती की रक्षा के लिये अन्तिम क्षण तक लड़ेगा।"

प्रश्न २. चेन्नम्मा का जन्म कब हुआ ? 

उत्तर - चेन्नम्मा का जन्म सन १७७८ ई० में हुआ था । 

प्रश्न ३. मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद कित्तूर की गद्दी पर कौन बैठा?

उत्तर - मल्लसर्ज की मृत्यु के बाद कित्तूर की गद्दी पर उनका पुत्र शिवलिंग रुद्रसर्ज बैठा ।

प्रश्न ४. रानी चेन्नम्मा के चरित्र के मुख्य गुणों का उल्लेख करो ।

उत्तर - रानी चेन्नम्मा के चरित्र में वीरता, अदम्य साहस, पराक्रम, देश-भक्ति और देश-प्रेम आदि गुणों से परिपूर्ण था ।

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