हिंदी व्याकरण - वर्ण विभाग, सन्धि प्रकरण, परिभाषा, प्रकार, उदहारण
हिन्दी व्याकरण - Hindi Vyakaran
व्याकरण की परिभाषा-
व्याकरण भाषा के वे नियम हैं जिनसे किसी भाषा के शुद्ध लिखने तथा बोलने में सहायता मिलती है । इस प्रकार व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, लिखना तथा ठीक प्रकार समझना आ जाता है ।
भाषा -
भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने मन के विचार प्रकट करता है, तथा दूसरों के विचार जान जाता है । प्रायः मनुष्य अलग-अलग ढंग से अपने विचार प्रकट करते हैं । इसलिये भाषा का रूप स्थिर नहीं रहने पाता । व्याकरण भाषा के रूप को स्थिर कर देती है । भाषा वाक्यों से बनती है, वाक्य शब्दों से और शब्द ध्वनियों से बनते हैं । इस प्रकार भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है।
लिपि
जिस रूप में कोई भाषा लिखी जाती है, उसे लिपि कहते हैं, जैसे - हिन्दी भाषा की लिपि देवनागरी है ।
व्याकरण के भाग -
व्याकरण के तीन भाग होते हैं -
१. वर्ण विभाग, २. शब्द विभाग, ३. वाक्य विभाग ।
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१. वर्ण विभाग
वर्ण की परिभाषा
वर्ण उस छोटी ध्वनि को कहते हैं जिसके टुकड़े नहीं हो सकते । इन्हें अक्षर भी कहते हैं । हिन्दी में कुल ४६ अक्षर हैं ।
वर्णों के भेद -
वर्ण दो प्रकार के होते हैं -
१. स्वर, २. व्यंजन ।
१. स्वर -
हिन्दी भाषा में निम्नलिखित १३ स्वर होते हैं -
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, ऋ ।
२. व्यंजन -
हिन्दी भाषा में व्यंजनों को सात वर्गों में बाँटा गया है तथा यह ३६ होते है।
क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ ।
च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ ।
ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण ।
त वर्ग - त, थ, द, ध, न ।
प वर्ग - प, फ, ब, भ, म ।
अन्तस्थ - य, र, ल, व ।
ऊष्म - श, ष, स, ह, ।
संयुक्त अक्षर की परिभाषा -
इन व्यंजनों के अतिरिक्त तीन अन्य वर्ण भी होते हैं - जो क्ष, त्र, ज्ञ होते हैं । यह संयुक्त अक्षर कहलाते हैं ।
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सन्धि प्रकरण
सन्धि की परिभाषा
सन्धि की परिभाषा तथा स्वर सन्धि के बारे में छात्र कक्षा छ: में पढ़ चुके हैं किन्तु पिछले कार्य को दोहराने के लिए यहाँ पुनः प्रस्तुत किया जा रहा है ।
सन्धि - दो शब्दों के मेल को सन्धि कहते हैं; जैसे - विद्यालय शब्द 'विद्या' और 'आलय' इन दोनों शब्दों से मिलकर बना है । सन्धियाँ तीन प्रकार की होती हैं -
१. स्वर सन्धि, २. व्यंजन सन्धि, ३. विसर्ग सन्धि ।
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स्वर सन्धि
स्वर सन्धि की परिभाषा -
जब मिलने वाले दो शब्दों में से पहले शब्द के अन्त में स्वर होता है और दूसरे शब्द के आरम्भ में भी स्वर होता है, तब वहाँ स्वर सन्धि होती है । इस प्रकार स्वर के साथ स्वर के मेल को स्वर सन्धि कहते हैं । स्वर सन्धि के प्रमुख भेद निम्न हैं
१. दीर्घ सन्धि - जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ से परे क्रम से ये ही स्वर आएँ तो दोनों को मिलाकर दीर्घ हो जाता है; जैसे
मत + अनुसार = मतानुसार (अ + अ = आ)
परम + आत्मा = परमात्मा (अ + आ = आ)
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी (आ + अ = आ)
रवि + इन्द्र = रवीन्द्र (इ + इ = ई)
मही + इन्द्र = महीन्द्र (ई + इ = ई)
विधु + उदय = विधूदय (उ + उ = ऊ)
२. गुण सन्धि - यदि ह्रस्व या दीर्घ 'अ' के आगे 'इ' या 'ई' हो तो दोनों को मिलाकर 'ए' हो जाता है और यदि 'उ' या 'ऊ' हो तो 'ओ' हो जाता है और यदि 'ऋ' हो तो 'अर्' हो जाता है; जैसे -
देव + इन्द्र = देवेन्द्र (अ + इ = ए)
हित + उपदेश = हितोपदेश (अ + उ = ओ)
महा + ऋषि = महर्षि (आ + ऋ = अर्)
रमा + ईश = रमेश (अ + ई = ए)
पर + उपकार = परोपकार (अ + उ = ओ)
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि (अ + ऋ = अर्)
३. वृद्धि सन्धि - जब ह्रस्व या दीर्घ 'अ' के आगे 'ए' या 'ऐ' हो तो दोनों को मिलाकर 'ऐ' हो जाता है और 'ओ' या 'औ' हो तो दोनों को मिलाकर 'औ' हो जाता है; जैसे - सदा + एव = सदैव (आ + ए = ऐ)
महा + औषध = महौषध (आ + औ = औ)
मत + ऐक्य = मतैक्य (अ + ऐ = ऐ)
एक + एक = ऐकैक (अ + ए = ऐ)
४. यण सन्धि - जब ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, लू से परे कोई भिन्न स्वर हो तो उसके स्थान पर क्रम से य, व, र् तथा ल् हो जाता है; जैसे -
इति + आदि = इत्यादि (इ का य् हो गया)
सु + आगतम् = स्वागतम् (उ का व् हो गया)
लृ + आकृति = लाकृति (लू का ल हो गया)
पितृ + अनुमति = पित्रनुमति (ऋ का र् हो गया)
५. अयादि सन्धि - यदि ए, ऐ, ओ, औ से परे कोई स्वर आए तो इनके स्थान पर क्रम से अय्, आय, अव्, आव् हो जाता है, जैसे -
ने + अन = नयन (ए का अय् हो गया)
गै + अक = गायक (ऐ का आय् हो गया)
पो + इत्र = पवित्र (ओ का अव् हो गया)
नौ + इक = नाविक (औ का आव् हो गया)
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