संत काव्य और विविध सम्प्रदायों का सांगम: पठन और प्रभाव
संत काव्य (भक्ति साहित्य) भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो सम्पूर्ण भारतीय साहित्य को आपसी भावना, भक्ति और आध्यात्मिकता की दिशा में एक साझा धारा में एकता प्रदान करता है। संत काव्य के काव्यरचना और साहित्यिक परंपरा में विविध सम्प्रदायों का प्रभाव होता है, जो भारतीय साहित्य को रूपरेखा और भावना के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
वैष्णव सम्प्रदाय:
संत काव्य में वैष्णव सम्प्रदाय का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है। वैष्णव संतों ने अपने काव्य में विष्णु भगवान की भक्ति को उजागर किया है और उनके कृष्ण लीलाओं को सुंदरता से चित्रित किया है। तुलसीदास के 'रामचरितमानस' में राम भगवान की महिमा और भक्ति के अद्वितीयता को प्रमोट किया गया है।
निर्गुण सम्प्रदाय:
कबीर और मीराबाई जैसे संतों ने निर्गुण भगवान की भक्ति को अपने काव्य में उजागर किया है। इन संतों का काव्य अधिकतर भक्ति, नैतिकता, और समाज सुधार की ओर मोड़ करता है।
शैव सम्प्रदाय:
आदि शंकराचार्य और तुकाराम जैसे संत शैव सम्प्रदाय के प्रमुख प्रतिष्ठान हैं और उनके काव्य में भगवान शिव की महिमा और शिव भक्ति को बड़े भावपूर्णता के साथ दिखाया गया है।
सिख सम्प्रदाय:
संत काव्य में सिख सम्प्रदाय का भी प्रभाव है, जैसे गुरु नानक देव और कवि संत सिंह। उन्होंने आपसी समरसता, सामंजस्य, और एकता को बढ़ावा देने के लिए अपने काव्य में ज्ञान और प्रेरणा प्रदान की है।
भक्ति और सामाजिक सुधार:
संत काव्य में सामाजिक सुधार की भावना बहुत उजागर होती है। संतों ने जातिवाद, व्यापारिकता, और अन्य सामाजिक अवस्थाओं के खिलाफ अपने काव्य में आपत्ति जताई है और समरसता, सामंजस्य, और नैतिक मूल्यों की प्रमोट की है।
इस प्रकार, संत काव्य ने भारतीय साहित्य को आपसी भावना, धार्मिकता, और सामाजिक सुधार की दिशा में प्रेरित किया है
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