कृष्ण भक्ति काव्य: दार्शनिक पृष्ठभूमि और धार्मिक सिद्धांत

 कृष्ण भक्ति काव्य: दार्शनिक पृष्ठभूमि और धार्मिक सिद्धांत


कृष्ण भक्ति काव्य की दार्शनिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए भारतीय दार्शनिक और धार्मिक परंपराएं महत्वपूर्ण हैं, जो इस काव्य धारा को प्रभावित करती हैं। यहां कुछ मुख्य दार्शनिक पृष्ठभूमियों की चर्चा की जा रही है:


भक्ति दर्शन: 

भारतीय दार्शनिक परंपरा में भक्ति दर्शन एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भक्ति का अर्थ होता है ईश्वर के प्रति अद्भुत प्रेम और श्रद्धा। इस दर्शन में भक्ति को मुक्ति की सर्वोत्तम राह माना जाता है और भक्ति रूपी साधना के माध्यम से परमात्मा के साथ एकता को प्राप्त करने का उपाय समझा जाता है। कृष्ण भक्ति काव्य में भी भक्ति दर्शन की यह धारा प्रभावित है और कृष्ण भक्ति का आधार इस दर्शनिक परंपरा पर है।

वेदान्त दर्शन: 

वेदान्त दर्शन भी कृष्ण भक्ति काव्य को प्रभावित करता है। वेदान्त के अनुसार, ब्रह्म ही सत्य है और जीवात्मा और परमात्मा में एकता है। कृष्ण भक्ति काव्य में भी कृष्ण को परमब्रह्म रूप में व्यक्त किया जाता है और भक्ति के माध्यम से इस एकता की प्राप्ति को बताया जाता है।


सांख्य दर्शन: 

सांख्य दर्शन के अनुसार, प्रकृति और पुरुष के बीच विवेक होता है और मोक्ष का साधना पुरुषार्थ के माध्यम से होती है। कृष्ण भक्ति काव्य में भी मोक्ष की प्राप्ति के लिए भक्ति और साधना की महत्वपूर्णता को बताया जाता है।


न्याय दर्शन: 

न्याय दर्शन के अनुसार, धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष ही चार पुरुषार्थ हैं। कृष्ण भक्ति काव्य में भी इन पुरुषार्थों की महत्वपूर्णता को बताया जाता है और मोक्ष को सर्वोत्तम पुरुषार्थ माना जाता है।


इन दार्शनिक परंपराओं के माध्यम से कृष्ण भक्ति काव्य ने धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों को सांग्रहित किया है और भक्ति, ज्ञान, और नैतिकता की महत्वपूर्ण अवधारणाओं को प्रस्तुत किया है।


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