छायावाद का अर्थ, नामकरण और स्वरूप
छायावाद का अर्थ
"छायावाद" एक हिंदी शब्द है जिसका अर्थ है "छाया" या "साया"। इस शब्द का प्रमुख उपयोग साहित्यिक सांस्कृतिक आंदोलन के साथ जुड़ा है, जिसका आरंभ 20वीं सदी के आसपास हुआ था।
छायावाद भारतीय साहित्य में एक साहित्यिक आंदोलन था जिसने परंपरागत रूप से उपासित रस, भावनाओं और भाषा की बजाय नए और अनूठे रस, अनुभवों और भाषा के प्रयोग की प्रेरणा दी। इस आंदोलन के प्रमुख आचार्य रविन्द्रनाथ टैगोर, माखनलाल चतुर्वेदी, निराला, आचार्य महावीर प्रसाद, जयशंकर प्रसाद, भगवतीचरण वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, राजेन्द्र यादव, भगवान दीन यादव, आदि थे।
छायावादी कविताएँ अपनी अद्वितीय भावनाएं, सुंदर छंद और उच्च भाषा के लिए प्रसिद्ध हैं। इस साहित्यिक आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था साहित्य में नई रूपरेखा को प्रोत्साहित करना और भाषा को समृद्धि देना।
छायावाद का नामकरण
"छायावाद" का नामकरण भारतीय साहित्य में साहित्यिक आंदोलन के दौरान हुआ था, जिसमें कवियों ने नई भारतीय काव्यशैली को एक नाम दिया। इस नामकरण का मुख्य उद्देश्य था साहित्यिक विचारधारा को परंपरागत रूप से दृष्टिकोण और उद्दीपन से बाहर ले जाना।
"छाया" या "साया" शब्द का चयन इस आंदोलन के सिद्धांतों को संकेतित करने के लिए किया गया। यह शब्द एक प्रकार की छाया या साया की अनुभूति को दर्शाता है, जो कविता और साहित्य में नई रूपरेखा की ओर इशारा करता है। छायावादी कविताएँ नए रस, भावनाएँ, और भाषा का प्रयोग करती थीं, जिससे साहित्य में एक नया मोड़ आया।
छायावाद के नामकरण के पश्चात्, इस आंदोलन के कवियों ने भारतीय साहित्य को एक नए साहित्यिक दृष्टिकोण से देखने का संकल्प लिया, जो साहित्य की रूपरेखा में अहम बदलाव लाने का प्रयास करता था।
छायावाद का स्वरूप
छायावाद का स्वरूप भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण साहित्यिक आंदोलन रहा है, जिसने भारतीय कविता को एक नए साहित्यिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया। छायावाद का स्वरूप निम्नलिखित मुख्य विशेषणों पर आधारित है:
नए रसों का प्रयोग:
छायावादी कविताएं नए रसों का प्रयोग करती हैं, जैसे कि शांत, भक्ति, वीर, आदि। ये कविताएं भावनाओं को मन, दिल और आत्मा के संबंध में व्यक्त करने का प्रयास करती हैं।
व्यक्तिगत भावनाएं:
छायावादी कविताएं अपनी व्यक्तिगत भावनाओं को महत्वपूर्ण मानती हैं और इसे कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करती हैं। कवि अपनी आत्मा की अनुभूतियों, विचारों, और अनुभवों को साझा करने का प्रयास करता है।
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अलौकिक और अद्वितीय भाषा:
छायावादी कविताएं अपनी भाषा में अलौकिकता और अद्वितीयता का महत्वपूर्ण स्थान देती हैं। कविता में साधारिता की बजाय विशेष शब्द, छंद, और अलंकारों का प्रयोग किया जाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य का महत्व:
छायावादी कविताएं प्राकृतिक सौंदर्य को महत्वपूर्ण बनाती हैं। कवि अक्सर प्राकृतिक तत्वों, सीता-राम, कृष्ण और अन्य पौराणिक किस्सों के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है।
सामाजिक और धार्मिक चेतना:
छायावादी कविताएं सामाजिक और धार्मिक चेतना को महत्वपूर्ण मानती हैं और इसे कविता के माध्यम से साझा करती हैं। समाज में सुधार, नैतिकता, और मानवीय मूल्यों की प्रोत्साहना छायावादी कविताओं में देखा जा सकता है।
छायावाद का स्वरूप इन मुख्य विशेषणों में सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद, राजेन्द्र यादव, भगवतीचरण वर्मा, और अन्य कवियों की कविताओं में देखा जा सकता है।
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