गुरु नानकदेव का जीवन परिचय - Biography of Guru Nanak Dev
गुरु नानकदेव - Guru Nanak Dev
नानकदेव का जन्म लाहौर से चालीस मील दूर दक्षिण-पश्चिम में स्थित तलवण्डी नाम गाँव में १४६६ में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था । इनकी माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम मेहता कल्याण राय (मेहता कालू) था । नानकदेव के जन्म पर उनके पिता ने विशेष उत्सव किया । बहन ''नानकी' के नाम के अनुकरण पर शिशु का नाम नानक रखा गया । बालक नानकदेव जब नौ वर्ष के हुये तो कालू मेहता ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार करना चाहा । कुटुम्ब के पुरोहित हरदयाल ने यज्ञोपवीत हाथ में लेकर बालक से कहा, "यज्ञोपवीत धारण करो, यह तुम्हें लोक-परलोक दोनों में प्रतिष्ठा दिलायेगा।" बालक नानकदेव ने तर्कपूर्ण ढंग से कहा, "कपास से बना यह यज्ञोपवीत किसी को परलोक में किस प्रकार प्रतिष्ठा दे सकता है ? यह तो पंचभौतिक शरीर के साथ यहीं रह जाता है । मुझे ऐसा यज्ञोपवीत धारण करायें जो मेरे साथ परलोक भी जा सके ।"
नानकदेव दिन-रात ईश्वर-चिन्तन और उसके गुण-कीर्तन में मग्न रहते, यहाँ तक कि उन्हें खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती । पिता ने समझा कि वे रोगी हो गये हैं । अतः वैद्य बुलाया गया, उसने नानकदेव की नाड़ी देखी लेकिन रोग का पता न लगा पाया। पीड़ा तो नानक के हृदय में थी, उसे नाड़ी टटोलने वाला वैद्य भला क्या समझ पाता ? अतः वह हैरान-सा वापस चला गया । धीरे-धीरे नानकदेव का यश चारों ओर फैलने लगा । उनके ध्यान, ज्ञान, सत्संग, भजन और विलक्षण गुणों की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी । लोग कहते कि पटवारीजी का लड़का तो कोई सिद्ध पुरुष है, ईश्वर का अंश है । नानकी देवी १६-१७ वर्ष की अवस्था में जिला गुरुदासपुर के निवासी के चीना क्षत्रिय मूलचन्द की लड़की सुलक्षणी देवी से उनका विवाह कर दिया । उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम श्रीचन्द्र रखा गया । दो वर्ष बाद लक्ष्मीचन्द्र नामक दूसरे बेटे ने जन्म लिया लेकिन उन्हें कोई मोह जाल बाँध नहीं सका ।
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नानकदेव मूर्ति-पूजा के विरोधी थे । सायँकाल मन्दिर में आरती के समय वे मरदाना के साथ एक ओर खड़े हो गये । आरती की समाप्ति पर पण्डित ने पूछा, 'आपने आरती में भाग क्यों नहीं लिया ?" नानकदेव आश्चर्य से बोले, "कैसी आरती ? उस परमात्मा की आरती तो स्वयं हो रही है । देखो, यह आकाश उसकी आरती के लिये थाल बन रहा है जिसमें सूर्य और चन्द्रमा प्रकाश के दो दीप जल रहे हैं, तारे उसमें फूल से रखे हैं। वायु चमर कर रही है, मलयगिरि की सुगन्ध का धूप जल रहा है और चारों ओर के असंख्य शब्द, शंख और घड़ियालों का काम दे रहे हैं । ऐसी प्राकृतिक आरती देखकर हम उस परमात्मा को धन्य कहते हैं । हम इन मूर्तियों की क्या आरती उतारें जो स्वयं मनुष्य की बनाई हुई हैं ?''
गुरु नानक अपने समाज के सच्चे पथ-प्रदर्शक थे । उन्होंने निर्भीक होकर समाज की कुरीतियों और तत्कालीन समाज के भेदपूर्ण व्यवहार तथा अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाई । जीवन के तीन अंगों का महत्त्व प्रतिपादित किया । वे अंग थे । अच्छा काम करना, सबके साथ मिलकर खाना और ईश्वर का स्मरण करना । उन्होंने एकेश्वरवाद के सिद्धान्त की फिर से स्थापना की । उनका कहना था कि ईश्वर निरबैर, निष्पक्ष, निडर, अकाल और अभय है । उन्होंने भारत से बाहर अफगानिस्तान, काबुल, अरब, तिब्बत आदि देशों में भी अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया ।
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अभ्यास प्रश्न
प्रश्न १. तलवण्डी को ननकाना साहब क्यों कहा जाता है ?
प्रश्न २. मरदाना कौन था और नानक देव के साथ वह क्या करता था ?
उत्तर - मरदाना नानकदेव का परम भक्त था । वह नानकदेव के साथ अपना रबाब बजाकर गाता रहता था ।
प्रश्न ३. नानकदेव के क्षत्रिय दीवान भागों का निमन्त्रण क्यों नहीं स्वीकार किया?
उत्तर - नानकदेव ने क्षत्रिय दीवान भागों का निमन्त्रण इसलिये स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह कपटी और लालची थे ।
प्रश्न ४. नानकदेव ने अपने उपदेशों में किस बात पर बल दिया ?
उत्तर - हिन्दू-मुसलमान एक हैं, एक ही परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं, अपने उपदेशों में गुरु नानकदेव ने इसी बात पर बल दिया ।
प्रश्न ५. नानकदेव का अन्तिम संस्कार किस प्रकार हुआ ?
उत्तर - गुरु नानकदेव की मृत्यु पर हिन्दू, मुसलमानों में झगड़ा हो गया । हिन्दू कहते - हम अपनी धार्मिक रीति के अनुसार इनका शरीर जलायेंगे, मुसलमान कहते - हम इन्हें दफनायेंगे । झगड़ते-झगड़ते जब ये लोग परदे के भीतर गये तो चादर पर गुरु नानक के मृत शरीर के स्थान पर कुछ फूल पड़े मिले । आधी चादर का हिन्दुओं ने अग्नि संस्कार कर दिया और मुसलमानों ने अपने धर्म की रीति के अनुसार आधी चादर को दफना दिया।
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