पृथ्वीराज रासो: एक अद्वितीय साहित्यिक अनुभव या ऐतिहासिक संदेह

पृथ्वीराज रासो: एक अद्वितीय साहित्यिक अनुभव या ऐतिहासिक संदेह? 

पृथ्वीराज रासो कौन था ?


पृथ्वीराज रासो (Prithviraj Raso) का उल्लेख एक कविता कला में होता है, जो एक महाकाव्य है जो भारतीय इतिहास के एक प्रमुख राजा पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित है। पृथ्वीराज रासो का रचनाकार चंद बरदाई (Chand Bardai) था, जो पृथ्वीराज चौहान के दरबारी थे और उनके साथी भी थे।


पृथ्वीराज चौहान 12वीं सदी के भारतीय इतिहास के एक प्रमुख राजा थे और उनका राज्य दिल्ली के सुलतान गाजनी के बहादुर शाह से लड़ा गया था। पृथ्वीराज रासो में उनके युद्ध कला, साहस और उनके द्वंद्व राजा जयचंद के साथ की गई संघर्ष का वर्णन है।

कृपया ध्यान दें कि पृथ्वीराज रासो का इतिहासी तथ्यों और कविता कला के बीच में अंतर हो सकता है, और कविता कला में कवि अपनी कल्पना का भी प्रयोग करता है।

पृथ्वीराज रासो का रचनाकाल है

पृथ्वीराज रासों का रचनाकाल 12वीं और 13वीं सदी के बीच माना जाता है। इसके रचनाकाल को चौबीस अंशों में विभाजित किया जा सकता है, जो आधुनिक भाषा में अधिकतम बारह संबंधित आंशों के साथ हैं। इस एपिक का समय राजा पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल के दौरान (1166–1192 ई.) है, जो दिल्ली के सुलतान अल्तामश के खिलाफ था। रासों में पृथ्वीराज रास का अधिकांश स्थान मिलता है जिसमें राजा पृथ्वीराज की वीरता और भक्ति भरी कविताएं हैं। इस एपिक का प्रमुख काव्य संग्रह "पृथ्वीराज रास" है, जिसे चंद बरछी (छंद) में रचा गया है।


‘पृथ्वीराज रासो’ की प्रामाणिकता के पक्ष तथा विपक्ष


"पृथ्वीराज रास" की प्रामाणिकता के पक्ष और विपक्ष में विभिन्न दृष्टिकोण हैं।


प्रामाणिकता के पक्ष:

ऐतिहासिक मौद्रिकता: कुछ विद्वान् इसे ऐतिहासिक मौद्रिकता का एक महत्वपूर्ण स्रोत मानते हैं। यह रास रचना काल में रचित गया और उस समय की राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक स्थितियों का एक उत्कृष्ट विवरण प्रदान करता है।


साहित्यिक महत्व: 

"पृथ्वीराज रास" को साहित्यिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें सुंदर कविताएं, रस, भावनाएं और कला हैं जो साहित्यिक उत्कृष्टता का प्रतीक हो सकती हैं।


राजस्थानी साहित्य का हिस्सा: 

यह एक महत्वपूर्ण राजस्थानी साहित्य का हिस्सा है और राजस्थानी भाषा और साहित्य को प्रमोट करने में मदद करता है।


प्रामाणिकता के विपक्ष:

काव्यरचना में परिवर्तन: कुछ विद्वान यह मानते हैं कि "पृथ्वीराज रास" के काव्यरचना में कुछ परिवर्तन किए जा सकते हैं जिससे इसकी प्रामाणिकता पर संदेह हो सकता है।


इतिहासी सत्यता का संदेह: 

कुछ विद्वान इस रास के कुछ हिस्सों की ऐतिहासिक सत्यता पर संदेह करते हैं, क्योंकि इसमें राजा पृथ्वीराज के जीवन की कई घटनाएं उत्खनित हैं जो विभिन्न स्थलों और ग्रंथों से मिलती हैं।


भक्ति और राजनीति का मेल: 

यह रास भक्ति और राजनीति को मिलाकर एक काव्य रचना है, और कुछ विद्वान इसे इस पर्याय की दृष्टि से उपयुक्त नहीं मानते हैं।


इन तर्कों के बावजूद, "पृथ्वीराज रास" एक महत्वपूर्ण साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर है, जिसका आधार राजस्थानी साहित्य और भक्तिसाहित्य में है।

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