रीतिमुक्त कवि के रूप में घनानंद का मूल्यांकन

 रीतिमुक्त कवि के रूप में घनानंद का मूल्यांकन


रीतिमुक्त कवि का अर्थ होता है वह कवि जो रीति बदलते हुए नए और स्वतंत्र रूपों में काव्य रचता है, बिना किसी रीति बंधन के। घनानंद, जो 17वीं सदी के भारतीय काव्यशास्त्री और कवि थे, इस दृष्टिकोण से एक रीतिमुक्त कवि के रूप में मूल्यांकित किए जा सकते हैं।

घनानंद ने अपने काव्य में विभिन्न काव्यरूपों का आत्मसात किया और नए अंगों का प्रयोग किया। उनकी कविताएं भक्ति, प्रेम, और अन्य विषयों पर आधारित थीं, और उन्होंने भारतीय साहित्य में नए दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया। इस प्रकार, वे रीतिमुक्त कविता के उदाहरण माने जा सकते हैं, जो साहित्य की परंपराओं से हटकर नए स्वरूपों की दिशा में आगे बढ़ते हैं।


घनानंद की रचनाएं उनके समझदारी और कलात्मक दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध हैं, जिससे उन्हें एक रीतिमुक्त कवि के रूप में मूल्यांकित किया जा सकता है।

रीतिमुक्त काव्य धारा


रीतिमुक्त काव्यधारा, हिन्दी साहित्य की एक महत्वपूर्ण काव्यधारा है जो आधुनिक काव्यशास्त्र में प्रमुख स्थान रखती है। इसे 'रीतिकाव्य' या 'रीतिमुक्तकाव्य' भी कहा जाता है। यह काव्यधारा भारतीय साहित्य के साथ-साथ हिन्दी साहित्य के विकास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।


रीतिमुक्त काव्यधारा का समय 20वीं सदी के आसपास है और इसका प्रवर्तन आधुनिक हिन्दी कविता में हुआ। इस काव्यधारा का मुख्य लक्षण रीतिकाव्य की बनावट में मुक्तिपन और स्वतंत्रता की अनुभूति है। इसमें कविता के रचनात्मक प्रक्रिया में स्वतंत्रता होती है, और कवि नए और अनूठे भावनात्मक अंशों को अपनी रचनाओं में शामिल करता है।


रीतिमुक्त काव्यधारा के कवियों ने भारतीय परंपराओं को छोड़कर नए रूपों और अंगों का प्रयोग किया, जिससे साहित्य में नया स्वास्थ्य और ऊर्जा आई। इसमें रचनात्मक स्वतंत्रता, अद्वितीय रूपों की प्रेरणा, और नई भावनाओं का प्रबंधन है। इस धारा में भक्ति, प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य, और व्यक्तिगत अनुभवों की महत्वपूर्ण भूमिका है।


रीतिमुक्त काव्यधारा ने हिन्दी साहित्य को नए दिशाएँ दिखाई हैं और कई महत्वपूर्ण कवियों ने इसमें अपनी रचनाओं के माध्यम से एक नए काव्यिक अंदाज में योगदान किया है।

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