हिन्दी साहित्य: आधुनिकता के संवेदनशील सफर

 हिन्दी साहित्य में आधुनिकता के बोध


हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का बोध आधुनिक काल के साथ हुआ है और यह एक सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई परिवर्तन का परिचय कराता है। आधुनिकता के बोध का आरंभ 19वीं सदी के आसपास हुआ था, जब भारतीय समाज में विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन हुआ और ब्रिटिश शासन के साथ आधुनिक विचारधारा का प्रभाव बढ़ा।


आधुनिकता के बोध का समयानुसार, हिन्दी साहित्य में उन कई चरणों को शामिल किया जा सकता है जो निम्नलिखित हैं:

भक्तिकाल: 

आधुनिकता का बोध समाज में सुधार और नए दृष्टिकोण के साथ शुरू हुआ। भक्तिकाल में संत और कवियों ने धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने रचनात्मक योगदान से आधुनिकता की शुरुआत की।


रीतिकावलीन काव्य: 

रीतिकावलीन काव्य, जो 17वीं और 18वीं सदी में लिखा गया, भी आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाता है। इसमें नए रास्ते, नई भाषा, और साहित्यिक प्रयोगशैली का परिचय होता है।


आधुनिक काल का प्रारंभ: 

19वीं सदी के आधिकारिक रूप से हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का प्रारंभ हुआ। इस काल में भाषा में परिवर्तन, समाज में जागरूकता, और नए विचारों का परिचय हुआ। नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र, कवियों जैसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर और सौरिन्द्रनाथ बनर्जी, और प्रेरणास्त्रोत के रूप में साहित्यिक पत्रिकाएं इस काल के महत्वपूर्ण दृष्टिकोण थे।


चयावाद: 

20वीं सदी के प्रारंभ से हिन्दी साहित्य में चयावाद (विशेषकर सुमित्रानंदन पंत के द्वारा) नामक आंदोलन हुआ जिसमें नई भाषा, विचार और साहित्यिक दृष्टिकोणों का परिचय हुआ।


नयी कहानी का आरंभ: 

आधुनिकता का अध्ययन करते समय, 20वीं सदी में नयी कहानी का आरंभ भी महत्वपूर्ण है जिसमें लेखकों ने नए सामाजिक मुद्दों और माध्यमों का संज्ञान लिया।


इस प्रकार, हिन्दी साहित्य में आधुनिकता का बोध समयानुसार विकसित हुआ है और यह साहित्यिक उत्थान के साथ-साथ समाज में परिवर्तन का भी परिचय कराता है।


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