बिहारी: रीतिमुक्तता के सचेतक

 बिहारी: रीतिमुक्तता के सचेतक

बिहारी रीतिमुक्त कवि हैं अथवा रीतिबद्ध

बिहारी लाल, 17वीं सदी के हिन्दी कवि थे और उन्हें रीतिमुक्त कवि के रूप में जाना जाता है। उनकी कविताएं रीतिमुक्त अंशों के साथ होती थीं, जिससे उन्हें रीतिकाव्य में अद्वितीय स्थान प्राप्त हुआ।

रीतिमुक्त काव्य धारा काव्यशास्त्र में एक विशेष काव्यरूप है जिसमें कवि रीतिबद्धता के बंधनों से मुक्त होकर नए और स्वतंत्र भाषाई अभिव्यक्ति का प्रयास करता है। इसमें भाषा की उन्नति, विचारों का स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्ति, और नए अलंकार और छंदों का प्रयोग होता है। बिहारी लाल ने अपनी कविताओं में इसी दिशा में योगदान किया और उन्हें रीतिमुक्त कवि के रूप में माना जाता है।

बिहारी की काव्य भाषा एंव ब्रज भाषा की काव्य-परम्परा

बिहारी लाल की काव्य भाषा ब्रज भाषा में लिखी गई थी। ब्रज भाषा, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, दिल्ली, और हरियाणा के क्षेत्र में प्रचलित रही है, और यह महाकाव्य और काव्यग्रंथों की भाषा रही है। बिहारी लाल ने भी इस भाषा का प्रयोग करके अपनी कविताओं को रचा।


ब्रज भाषा की काव्य-परम्परा भक्ति और प्रेम के भावों पर आधारित थी। इसमें गोपी-गोपाल भक्ति, प्रेम रस, और वीर रस के अलावा भी विभिन्न रसों का प्रस्तुतिकरण होता था। इस परम्परा में कवियों ने भक्ति भावना के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर भी काव्य रचा।


ब्रज भाषा की काव्य-परम्परा में सूरदास, तुलसीदास, कृष्णकावी, बिहारी, और अन्य कवियों का योगदान अद्वितीय है। इस परम्परा में भक्ति और साहित्यिक शृंगार एक साथ व्यक्त होते हैं, और इसने हिन्दी साहित्य को एक नया दिशा देने में मदद की है।


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