गोस्वामी तुलसीदास जी की रचनाएँ और उनका विस्तृत परिचय
गोस्वामी तुलसीदास एक महान संस्कृत और हिन्दी भाषा के कवि थे, जो 16वीं सदी के भारतीय साहित्य के एक महत्वपूर्ण और प्रमुख व्यक्ति थे। उनकी रचनाएं धार्मिक और भक्तिभाव से भरी हुई हैं और उन्हें 'तुलसी' के नाम से भी जाना जाता है। तुलसीदास ने रामचरितमानस के रूप में अपनी सबसे प्रसिद्ध रचना की है, जो रामायण के महाकाव्य को हिन्दी भाषा में प्रस्तुत करती है।
यहां गोस्वामी तुलसीदास जी की कुछ प्रमुख रचनाएं हैं:
रामचरितमानस (Ramcharitmanas): यह उनकी सबसे महत्वपूर्ण रचना है और इसे हिन्दी कविता का महाकाव्य माना जाता है। इसमें तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण की कथा को अद्वितीय भाषा में लिखा है और भक्ति भाव को महत्वपूर्ण रूप से प्रमोट किया है।
हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa):
यह एक छंद स्तोत्र है जो हनुमान जी की महिमा को गाता है और भक्तों को उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करता है।
विनयपत्रिका (Vinay-patrika):
यह एक भक्तिभावपूर्ण काव्य है जिसमें तुलसीदास ने अपनी भक्ति और विनय की भावना को अभिव्यक्त किया है।
जानकी मांगल (Janaki Mangala):
इसमें तुलसीदास ने सीता-राम की विवाह की कथा को सुंदरता से व्यक्त किया है।
कवितावली (Kavitavali):
यह एक भक्तिभावपूर्ण काव्य संग्रह है जिसमें तुलसीदास ने विभिन्न देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन किया है।
सुंदरकाण्ड (Sundarakanda):
यह रामचरितमानस का एक अंश है जिसमें हनुमान जी लंका का अद्भुत वर्णन करते हैं और सीता माता से मिलते हैं।
तुलसीदास जी की रचनाएं हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से हैं और उनका काव्य साधारित जीवन में धार्मिकता और भक्तिभाव को प्रोत्साहित करने में मदद करता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने लोकप्रिय ग्रंथ "रामचरितमानस" में कई दोहे रचे हैं, जो आज भी लोकप्रियता में हैं और जीवन के अनेक पहलुओं को सुंदरता से व्यक्त करते हैं। यहां कुछ ऐसे प्रमुख दोहे हैं जो गोस्वामी तुलसीदास जी के प्रसिद्ध हैं:
चित्रकूट के घाट पर:
चित्रकूट के घाट पर बैठा भयानक भारी।
राम संकट कटे मिते सब पीरा॥
जब लगूँ तुम्हे एक कहानी:
जब लगूँ तुम्हे एक कहानी,
तब लगूँ मैं श्रीराम कवानी॥
काजी भयो दुष्ट गला सिराना:
काजी भयो दुष्ट गला सिराना।
सागर सागर में बढ़त बहत जाना॥
राम राज्य बिना जगत में कोई नहीं:
राम राज्य बिना जगत में कोई नहीं।
विश्व बिना राम होगा अधूरा तो नहीं॥
दुर्बल भले बुद्धि मिताएं:
दुर्बल भले बुद्धि मिताएं,
जीवतु विनय न जाय।
ग्यान बुद्धि नहीं तात्काल:
ग्यान बुद्धि नहीं तात्काल,
होती नहीं अच्छर भाग।
ये दोहे भक्ति, धर्म, और जीवन के सिद्धांतों को सरल भाषा में प्रस्तुत करते हैं और गोस्वामी तुलसीदास जी की उदार भावना और गहराई से रूपित हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी की चौपाई
गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने कृतियों में कई चौपाइयाँ रची हैं, जिनमें वे भक्ति, नैतिकता, और मानवता के सिद्धांतों को सरलता से व्यक्त करते हैं। यहां कुछ प्रमुख चौपाइयाँ हैं जो गोस्वामी तुलसीदास जी की रचनाओं से उद्धृत हैं:
चित्रकूट के घाट पर:
ब्रज में हैं बसत राम का बड़ा भवानी जी,
विष्णु-रुपा को धरि' धरावहि सुरानी जी॥
हरि आनंद कहो वसुदेवा:
हरि आनंद कहो वसुदेवा।
हरि आनंद कहो वसुदेवा॥
कानपूर बढ़ाएं राखे:
कानपूर बढ़ाएं राखे श्रीराम सीता मुकुट हारी।
धूप दीप कहे भक्ति नित्य करहु कल्याण भारी॥
मन राम गुण गान में:
मन राम गुण गान में,
जब आवै श्रीराम।
धीरे-धीरे रे मना:
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए।
माली सींचे सौ घड़ा, रितु आए फल होए॥
जब ते तुलसी राम प्रभु भाए:
जब ते तुलसी राम प्रभु भाए।
तात मात बनि कठिन भवानी भाए॥
ये चौपाइयाँ भक्ति और धार्मिकता के साथ साथ, जीवन के विभिन्न पहलुओं को सुंदरता से दर्शाती हैं और गोस्वामी तुलसीदास जी की गहरी भावना को प्रकट करती हैं।
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