गुरु की गरिमा

 गुरु की गरिमा 


पहले मुसलमानो के बादशाह ख़लीफ़ा कहलाते थे।


हारुन रशीद एक प्रशिद्ध ख़लीफ़ा थे उनके दो लड़के थे। एक का नाम अमीन और दूसरे का नाम मामून था। इन दोनों लड़को को पढ़ाने एक गुरूजी प्रतिदिन आते थे। दोनों लड़के गुरूजी का बड़ा सम्मान करते और उनकी आज्ञा का पालन करते।

एक दिन दोनों लड़को की परीक्षा लेने के लिए गुरूजी ने कहा, "मेरा जूता उठा लाओ।" अमीन और मामून दोनों जूता उठाने के लिए दौड़ पड़े। अमीन ने मामून से कहा, "गुरूजी ने जूता लाने के लिए मझसे कहा है"। मामून ने कहा, "नही, जूता उठाकर लाने के लिए मुझसे कहा है "। अमीन ने कहा, "तुम छोटे हो, मुझे जूता ले जाने दो, गुरूजी संकेत मेरी ओर था"। मामून ने कहा, आप मेरे बड़े भाई है,। अगर यह मान भी लिया तो भी मै आपका छोटा भाई हूँ, छोटे भाई के होते हुए बड़ा भाई जूता उठाकर न ले जाये"।



दोनों भाई देर तक बहस करते रहे ।अंत दोनों राजकुमार गुरूजी का एक-एक जूता उठाकर ले गये । गुरूजी ने दोनों को दुआये दी और शाबाश कहा।

गुरूजी के जूते उठाकर ले जाने समाचार ख़लीफ़ा हारुन तक पहुंच गया। ख़लीफ़ा ने प्रधानमंत्री को बुलाकर आदेश दिया कि "कल आम दरबार होगा, आप मेरी सल्तनत में मनादी करा दीजिए।

दूसरे दिन आम दरबार लगा दरबार में आदमी खचा खच भरे थे। सभी दरबारी अपनी-अपनी जगह अदब के साथ बैठे थे। ख़लीफ़ा जब दरबार में पधारे तो सब अदब के साथ खड़े गये। ख़लीफ़ा ने हुक्म दिया, "लड़को के गुरूजी को बुला लाओ "। गुरूजी शहज़ादों को पढ़ा थे। हरकारा पंहुचा और उसने कहा, "आपको ख़लीफ़ा ने याद किया है, फौरन शाहज़ादों को साथ लेकर चलिए"।

गुरूजी के पैरों तले से जमीन निकल गई। सोचा, खैर नही। शहज़ादों को साथ लेकर गुरूजी दरबार पहुंचे। गुरूजी देख कर ख़लीफ़ा अपने तख़्त से नीचे उतर आये। गुरूजी ने ख़लीफ़ा के पास पहुंचकर कहा,"अस्सलाम व अलैकुम"। शहज़ादों ने भी कहा, "अस्सलाम व अलैकुम"ख़लीफ़ा और दरबारी ने कहा, "व अलैकुम अस्सलाम" ख़लीफ़ा ने मौलवी साहब को तख़्त पर बैठने के लिए कहा और खुद भी तख़्त पर बैठ गये।

ख़लीफ़ा ने दरबारियों से पूछा, "बताओ, दुनिया में सबसे अधिक भाग्यशाली व्यक्ति कौन है? " दरबारी बोले उठे, "जहाँ पनाह ! आप के अलावा कोई दूसरा नही "। खलीफा ने कहा, "नही, दुनियां में सबसे अधिक भागयशाली वह है। जिसका जूता उठाने के लिए दो शहज़ादे आपस में लड़ते है और बहस करते है। "

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